युवाओं एवं दादा-दादी के बीच वार्तालाप के बिना इतिहास आगे नहीं बढ सकता। 

संत पिता फ्राँसिस ने रविवार को देवदूत प्रार्थना के उपरांत नाना-नानी एवं बुजूर्गों के लिए विश्व दिवस के अवसर पर उन्हें शुभकामनाएँ दीं। उन्होंने नाना-नानी एवं पोते-पोतियों के बीच वार्तालाप पर जोर दिया।
संत पिता फ्राँसिस ने नाना-नानी को सम्मानित करते हुए कहा, "हमने नाना-नानी एवं बुजूर्गों के प्रथम विश्व दिवस के अवसर पर समारोही ख्रीस्तयाग अर्पित किया है। दादा-दादी एवं पोते पोतियाँ, युवा और बुजूर्ग सभी मिलकर कलीसिया के एक सुन्दर चेहरे को प्रस्तुत करते हैं तथा पीढियों के बीच संबंध को दिखलाते हैं। मैं इस दिवस को सभी समुदायों में मनाने का निमंत्रण देता हूँ तथा दादा-दादी एवं बुजूर्गों से मुलाकात करने का प्रोत्साहन देता हूँ। जो बिलकुल अकेले हैं उन्हें मेरा संदेश पहुँचायें, जो येसु से प्रेरित है, "मैं हर दिन तुम्हारे साथ हूँ।"
संत पिता फ्राँसिस ने उनके लिए प्रार्थना करते हुए कहा, "मैं प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि यह पर्व उन लोगों को मदद करे जो काफी बुजूर्ग हैं वे जीवन के इस काल में अपने बुलावे का प्रत्युत्तर दे सकें, विशेषकर, इस दरकिनार करने की संस्कृति के समय में। दादा-दादी को युवाओं की जरूरत है और युवाओं को दादा-दादी की। उन्हें बात करना है, मुलाकात करना है। उनके पास इतिहास रूपी पेड़ का रस है जो बढ़ते वृक्ष को शक्ति प्रदान करता है।" उन्होंने कवि के एक पद की याद दिलाते हुए कहा, "पेड़ के फूलने में जो कुछ जरूरी है वह उसी से आता है जो जमीन के अंदर है।" युवाओं एवं दादा-दादी के बीच वार्तालाप के बिना इतिहास आगे नहीं बढ़ सकती, जीवन आगे नहीं बढ़ सकती। इसे पुनः शुरू करने की जरूरत है। इसे पुनः शुरू करने की आवश्यकता है यह हमारी संस्कृति के लिए एक चुनौती है। दादा-दादी को युवाओं को देखते हुए स्वप्न देखने का अधिकार है जबकि युवाओं को अपने दादा-दादी से रस लेकर भविष्यवाणी का साहस करना है। संत पापा ने सलाह देते हुए कहा, "दादा-दादी और युवा आप एक-दूसरे से मिलें, एक-दूसरे से बात करें। यह सभी को खुशी प्रदान करेगा।" 

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