पोप ने धर्मसमाजियों को प्रसन्नचित साक्षी बनने का प्रोत्साहन दिया। 

संत पिता फ्राँसिस ने लातिनी अमरीका एवं करेबियन के पुरूष और महिला धर्मसमाजियों के सम्मेलन को एक संदेश भेजा तथा निमंत्रण दिया कि वे सुसमाचार को अपने स्थानीय संस्कृति में रोपें और प्रसन्नचित साक्षी बनें। लातीनी अमरीका एवं करेबियन के धर्मसमाजी पुरूष और महिलाओं का एक ऑनलाईन सम्मेलन शुक्रवार को शुरू हुआ। लातीनी अमरीकी धर्मसमाजी संघ द्वारा आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम में "अंतर-धर्मसामाजिक, अंतर-सांस्कृतिक और धर्मसमाजी जीवन की ओर यात्रा करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।"  
संत पिता फ्राँसिस ने एक वीडियो संदेश द्वारा सम्मेलन को सम्बोधित किया जिसको सम्मेलन की शुरूआत में प्रस्तुत कया गया। उन्होंने अपने संदेश में सुसमाचार के सांस्कृतिक समायोजन तथा प्रसन्नता के साथ उसका प्रचार करने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा, "सांस्कृतिक समायोजन एक ऐसा शब्द है जिसका प्रयोग ईशशास्त्रीय मंडली में ख्रीस्तीय विश्वास को स्थानीय संस्कृति में स्वीकार करने और जीने के बारे बतलाने के लिए किया जाता है।"
संत पिता फ्राँसिस ने गौर किया कि धर्मसमाजियों का विशेष कर्तव्य है विश्वास का सांस्कृतिक समायोजन करना। उन्होंने कहा, "यह जानना हमारे लिए अधिक अच्छा है कि एकता समरूपता नहीं है बल्कि बहुआयामी सद्भाव है और पवित्र आत्मा सद्भाव के जनक हैं।    
संत पिता फ्राँसिस ने कहा, "धर्मसमाजी पुरूष और महिलाएँ उस ईशशास्त्र को बढ़ाने में मदद कर सकते हैं जो स्थानीय परिस्थिति में स्वीकार्य हो और सुसमाचार प्रचार का वाहक बने। उन्होंने कहा, "हम यह न भूलें कि विश्वास जिसकी जड़ संस्कृति में न हो वह सच्चा नहीं है।" उन्होंने उनसे अपील की कि वे उनकी परम्पराओं और रीति-रिवाजों का सम्मान करते हुए ...साथ ही संस्कृति में सुसमाचार प्रचार करने की कोशिश करते हुए विश्वास के लोगों के जीवन में प्रवेश करें।  
जब इसका सांस्कृतिक समायोजन नहीं हो पाता है तब ख्रीस्तीय जीवन पुराना और सबसे हास्यास्पद ज्ञानवादी प्रवृत्ति बनकर रह जाता है। उन्होंने कहा कि धर्मविधि का दुरूपयोग इसका एक उदाहरण है। संत पापा ने सम्मेलन के प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे विश्वास का सांस्कृतिक समायोजन करें और संस्कृति में सुसमाचार प्रचार करें।  
संत पिता फ्राँसिस ने खेद प्रकट करते हुए कहा कि अक्सर धर्मसमाजी समुदाय सदस्यों की संख्या और उनके बचे रहने की उम्मीद पर टिके रहते हैं। उन्होंने कहा कि "संख्या और दक्षता की कसौटी को त्यागना एक अच्छा विचार है, अन्यथा यह एक धर्मसमाजी को भयभीत, अतीत में फंसा हुआ और विषाद से पीड़ित, शिष्य के रूप में बदल सकता है।"
संत पिता फ्राँसिस ने धर्मसामाजियों को उदासी दूर करने की दवाई बतलाते हुए कहा कि यह दवाई है आनन्द। उन्होंने आग्रह करते हुए कहा, "ईश्वर की पवित्र प्रजा के साथ रहें, उनका सम्मान करें, सुसमाचार प्रचार करें एवं उनका साक्ष्य दें और बाकी को पवित्र आत्मा पर छोड़ दें।" आनन्द, ख्रीस्त के साथ जीवन की एक महान अभिव्यक्ति है और इसके द्वारा हम ईश्वर की पवित्र प्रजा को साक्ष्य दे सकते हैं और पिता के साथ मुलाकात हेतु यात्रा में उनका साथ दे सकते हैं, जिसके लिए हम बुलाये गये हैं।  

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