ईश वचन की गूँज है धर्मशिक्षा। 

संत पिता फ्रांसिस ने इटली के काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन (चेई) द्वारा राष्ट्रीय प्रचारक कार्यालय की ओर से आयोजित सभा के प्रतिभागियों से शनिवार को वाटिकन के क्लेमेंटीन सभागार में मुलाकात की।

राष्ट्रीय प्रचारक कार्यालय सभा के प्रतिभागियों ने इताली काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अध्यक्ष कार्डिनल ग्वालतियेरो बस्सेती एवं महासचिव मोनसिन्योर रूस्सो की अगुवाई में संत पिता फ्रांसिस से मुलाकात की। यह मुलाकात राष्ट्रीय प्रचारक कार्यालय की स्थापना की 60वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में की गई थी।

संत पिता फ्रांसिस ने कहा, "यह वर्षगाँठ सदस्यों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है, प्राप्त वरदानों के लिए धन्यवाद देने तथा प्रचार की भावना को नवीकृत करने के लिए।"

संत पिता फ्रांसिस ने सभा के प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए तीन मुख्य विन्दुओं पर चिंतन किया जो उन्हें आनेवाले वर्षों में मदद देगा -

धर्मशिक्षा एवं घोषणा:- धर्मशिक्षा ईश वचन की गूँज है। विश्वास के हस्तांतरण में मूल दस्तावेज होने पर भी धर्मग्रंथ मदद नहीं कर पाता। अतः धर्मशिक्षा ईश वचन की एक लम्बी लहर है जिसके द्वारा जीवन में सुसमाचार के आनन्द को संचारित किया जा सकता है। धर्मशिक्षा की व्याख्या के द्वारा ही पवित्र धर्मग्रंथ परिस्थिति बनता है जिसमें मुक्ति इतिहास के हिस्से होने के रूप में महसूस किया जा सकता है तथा विश्व के प्रथम साक्षी के साथ मुलाकात की जा सकती है। धर्मशिक्षा एक यात्रा कराती है जिसमें सभी अपना ताल पाते हैं क्योंकि ख्रीस्तीय जीवन समतल या समरूप को नहीं बल्कि ईश्वर के हरेक बच्चे के अनोखेपन को महत्व देता है।   

संत पिता फ्रांसिस ने घोषणा के अर्थ पर प्रकाश डालते हुए कहा कि "रहस्य का केंद्रविन्दु है घोषणा, और घोषणा एक व्यक्ति है येसु ख्रीस्त।" धर्मशिक्षा एक विशेष स्थल है जहाँ उनके साथ व्यक्तिगत मुलाकात को प्रोत्साहन दिया जाता है। इसलिए इसे व्यक्तिगत संबंध के साथ परस्पर जुड़ा होना चाहिए। हाड़-मांस के पुरूष और स्त्री के साक्ष्य के बिना कोई सच्ची धर्मशिक्षा नहीं है। धर्मशिक्षा के पहले पात्र वे हैं जो सुसमाचार के संदेशवाहक हैं, बहुधा, लोकधर्मी जो येसु के साथ अपने मुलाकत के सुन्दर अनुभवों को बांटते हैं।

संत पिता फ्रांसिस ने प्रश्न किया, "प्रचारक कौन है"? उन्होंने कहा, "वह वही है जो ईश्वर की याद को सुरक्षित रखता एवं उपजाऊ बनाता है। वह स्वयं आत्मसात् करता और दूसरों में जगाना जानता है। वह एक ख्रीस्तीय है जो अपनी यादों को सुसमाचार प्रचार की सेवा में लगाता है, अपने आपको दिखाने अथवा अपने बारे बतलाने के लिए नहीं बल्कि ईश्वर एवं उनकी सत्य प्रतिज्ञता के बारे बतलाने के लिए।"

धर्मशिक्षा देने हेतु आज की घोषणा की कुछ विशेषताओं को याद रखना आवश्यक है। संत पापा ने कहा कि नैतिक और धार्मिक कर्तव्यों से पहले ईश्वर के मुक्तिदायी प्रेम को प्रकट करना है। सच्चाई को नहीं थोपना बल्कि मुक्ति की बात करना, खुशी, उत्साह, जीवन शक्ति, और एक सामंजस्यपूर्ण पूर्णता की बातों को रखना है न कि कुछ ही धर्मसिद्धांतों तक सीमित होना। धर्मशिक्षा देने में लोगों के प्रति सामीप्य, वार्ता के लिए खुलापन, धीरज, सहृदय स्वागत और निंदा नहीं करना मदद दे सकते हैं।

धर्मशिक्षा एवं भविष्य:- संत पिता फ्रांसिस ने याद किया कि पिछले साल धर्मशिक्षा के नवीनीकरण दस्तावेज की 50वीं वर्षगाँठ मनायी गई थी जिसमें इताली काथलिक धर्माध्यक्षों ने समिति द्वारा निर्देश प्राप्त किया था। संत पिता फ्रांसिस ने वाटिकन द्वितीय महासभा के बाद चेई की आमसभा को सम्बोधित शब्दों की याद दिलाते हुए कहा, "यह एक ऐसा कार्य है जो धर्मशिक्षा के लिए निरंतर पुनर्जीवित एवं नवीकृत होता है ताकि उन समस्याओं को समझा जा सके जो मानव हृदय से उठते हैं कि उन्हें अपने छिपे स्रोत प्रेम के उपहार के पास वापस ले जाए: जो सृष्टि करता और बचाता है।"(25 सितम्बर 1971) अतः समिति द्वारा प्रेरित धर्मशिक्षा, निरंतर लोगों के हृदयों को खुले कान से सुनता और नवीनीकरण के लिए हमेशा तैयार रहता है।

संत पिता फ्रांसिस ने कहा कि जिस तरह इताली कलीसिया वाटिकन महासभा के बाद समय के चिन्ह एवं संवेदनशीलता के लिए तैयार थी और स्वीकार कर सकती थी, उसी तरह आज भी वह एक नवीकृत धर्मशिक्षा प्रदान करने के लिए बुलायी जाती है जो प्रेरितिक देखभाल (उदारता, धर्मविधि, परिवार, संस्कृति, सामाजिक जीवन और आर्थिक क्षेत्रों) के हर आयाम को प्रेरित करे। ईश वचन की जड़ से, प्रेरितिक प्रज्ञा की धड़ से, जीवन के विभिन्न पहलुओं के लिए उपयोगी दृष्टिकोण फलता-फूलता है। इस प्रकार धर्मशिक्षा एक असाधारण साहसिक कार्य है और कलीसिया के मोहरे के रूप में, इसका कार्य है समय के चिन्ह को पढ़ना एवं वर्तमान तथा भविष्य की चुनौतियों को स्वीकार करना। हमें आज की स्त्रियों एवं पुरूषों की भाषा बोलने से नहीं डरना चाहिए। हमें उनके सवालों, अनसुलझे मुद्दों, दुर्बलताओं और अनिश्चिचताओं को सुनने से भय नहीं खाना चाहिए। संत पापा ने प्रचारकों से कहा कि वे जो भी कार्य कर रहे हैं वे सही हैं किन्तु उन्हें आगे बढ़ना है नये उपायों को अपनाने से नहीं डरना है।

धर्मशिक्षा एवं समुदाय:- संत पिता फ्रांसिस ने कहा कि यह वर्ष महामारी के कारण एकाकी एवं अकेलापन की भावना से प्रभावित है। अपनेपन की भावना समुदाय का आधार होता है। हमने समझ लिया है कि हम अकेले कुछ नहीं कर सकते और यही संकट से बाहर निकलने का एक बेहतर रास्ता है अतः उस समुदाय को फिर से अपनाना जिसमें हम अधिक विश्वास के साथ रहते हैं क्योंकि समुदाय व्यक्तियों का समूह नहीं है बल्कि परिवार है जिसमें हम एकीकृत होते, एक-दूसरे की देखभाल करते, युवा बुजूर्गों से एवं बुजूर्ग युवाओं से मिलते हैं। सामुदायिक भावना को पुनःप्राप्त करने के द्वारा ही हम अपनी प्रतिष्ठा को प्राप्त कर सकते हैं।

धर्मशिक्षा एवं घोषणा ही इस सामुदायिक आयाम को केंद्र में रख सकते हैं। यह कुलीन रणनीतियों का समय नहीं है। खुले समुदायों के निर्माता बनने का समय है जो हरेक की क्षमता को महत्व देना जानता है। यह मिशनरी समुदाय का समय है, मुक्त एवं स्वार्थरहित जो प्रासंगिकता एवं लाभ की खोज नहीं करता किन्तु हमारे समय के लोगों के साथ चलता है। यह उस समुदाय का समय है जिनकी आँखों में निराश युवा देख सकते हैं कि वह अजनबियों का स्वागत करता एवं निस्र्त्साहित को आशा प्रदान करता है। यह समुदायों को उन लोगों के साथ बिना भय वार्ता करने का समय है जिनके विचार अलग हैं। यह समुदाय के लिए समय है भले समारी के समान होने का जो जानता है कि जीवन में घायल लोगों से किस तरह सामीप्य व्यक्त की जाती है, सहानुभूति से किस तरह उनके घावों को मरहम पट्टी लगायी जाती है।

संत पिता फ्रांसिस ने कहा कि वे एक ऐसी कलीसिया चाहते हैं जो परित्यक्त, भूलाये गये और अपूर्ण कलीसिया के करीब रहे। माँ के चेहरे के साथ एक प्रसन्नचित कलीसिया जो समझती, दुलारती और सहानुभूति रखती है।

संत पिता फ्रांसिस ने राष्ट्रीय प्रचारक कार्यालय द्वारा आयोजित सभा के प्रतिभागियों को धन्यवाद दिया तथा निमंत्रण दिया कि वे प्रार्थना करना जारी रखें एवं घोषणा पर केंद्रित  एक धर्मशिक्षा के रचनात्मक रूप पर चिंतन करें जो हमारे समुदाय के भविष्य को देखता है ताकि वे सुसमाचार, भाईचारा एवं समावेश में अधिक दृढ़ हो सकें। संत पापा ने उन्हें आशीष देते हुए अपने लिए प्रार्थना का आग्रह किया।     

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