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भारतीय स्कूलों में दलित एवं आदिवासी छात्रों का संघर्ष।
भारत के काथलिक अधिकारियों के अनुसार निर्धनता एवं भेदभाव की वजह से कई दलित एवं आदिवासी छात्र स्कूल छोड़ने पर मजबूर होते हैं। भारतीय शिक्षा मंत्रालय की एक रिर्पोर्ट में प्रकाशित किया गया कि स्कूल छोड़नेवाले छात्रों में सर्वाधिक संख्या दलित एवं आदिवासी छात्रों की है। 2019 एवं 2020 के आँकड़े प्रकाशित करने वाली रिपोर्ट में यह बात बताई गई।
रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया दर्शाते हुए भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन में आदिवासी मामलों के सचिव फादर निकोलस बारला ने कहा, मैं हैरान नहीं, बल्कि बहुत निराश हूँ क्योंकि आजादी के 74 साल बाद भी हम दलितों एवं आदिवासी लोगों की वास्तविक समस्या का समाधान नहीं कर पायें हैं, जो सभी क्षेत्रों में बहुत कमजोर हैं। भविष्य में स्थिति तब तक नहीं बदलेगी जब तक हम इसे सामूहिक रूप से संबोधित नहीं करते।
उन्होंने कहा कि दलितों एवं आदिवासी छात्रों के समय से पूर्व स्कूल छोड़ने के कई कारण हैं और इनमें सबसे गम्भीर कारण हैं, निर्धनता और भेदभाव। उन्होंने कहा दलित एवं आदिवासी बच्चों को प्रतिदिन अपनी जीविका के लिये संघर्ष करना पड़ता है इसलिये वे अपना पूरा ध्यान पढ़ाई में नहीं लगा पाते हैं। इसके अतिरिक्त, स्कूल में उनके साथ समान व्यवहार नहीं किया जाता।
भाषा की कठिनाई को उजागर करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिये कि वह संविधान के 350 वें अनुच्छेद को लागू करे जो छात्रों को उनकी अपनी भाषा में शिक्षा अर्जित करने की स्वतंत्रता देता है। उन्होंने कहा कि अन्य भाषाओं को उनपर थोपने से छात्र स्कूल छोड़ देते हैं। फादर बारला ने सुझाव दिया कि स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये जो स्थानीय स्थिति से वाकिफ़ हैं।
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