Radio Veritas Asia Buick St., Fairview Park, Queszon City, Metro Manila. 1106 Philippines | + 632 9390011-15 | +6329390011-15
सेहत पर भारी- 'डिस्प्ले स्क्रीन की लत'
बच्चे पहले टीवी के सामने कई घंटे बैठते थे। अब उसकी जगह कम्प्यूटर और टैबलेट ने ले ली है। व्यक्तिगत रूप से विचारों का आदान- प्रदान करने के लिए टेक्नोलॉजी सबसे घटिया विकल्प है। जो बच्चे इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले या डिवाइस का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, हो सकता है उनमें कई कार्य एकसाथ करने की क्षमता विकसित हो। लेकिन वे महत्वपूर्ण चीज़ों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं। ऐसे बच्चों में बड़ों के प्रति अनादर देखा गया है। यहां तक कि वे अपने मित्रों से भी ढंग से पेश नहीं आते हैं। चीन में बच्चे एवं युवाओं में वीडियो गेम खेलने के लिए कम्प्यूटर का अत्यधिक उपयोग खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है।
अमेरिका एवं अन्य देशों के अभिभावकों को इस विषय पर सतर्क होने की जरूरत है। कई जगहों पर देखने को मिला है कि बच्चे कई- कई घंटे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की स्क्रीन के सामने बिताते हैं। उनकी लत के कारण बच्चों का न केवल विकास प्रभावित हो रहा है, बल्कि वे अपनों से दूर होने लगे हैं। यह जानना इसलिए जरूरी है क्योंकि आज अमेरिका के चैनलों पर 'वेब जंकी डॉक्यूमेंट्री दिखाई जा रही है। यह ऐसे बच्चों पर बनी है, जो भोजन- नींद और यहां तक कि बाथरूम जाने का ब्रेक लिए बिना कई घंटे लगातार वीडियो गेम खेलते रहते हैं। अक्सर यह देखा गया है कि बोलना सीखने वाले बच्चे माता- पिता के स्मार्टफोन या टैबलेट से खुद मनोरंजन करने लगते हैं। वे अपनी नजर से दुनिया देखने की चाहत रखते हैं।
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के अनुसार दो साल की उम्र तक बच्चों के हाथ में कोई डिवाइस न दें। इस समय बच्चों का दिमाग तेजी से विकसित होता है। वे हमसे बात करके ज्यादा सीखते है , न कि डिवाइस से। बच्चे औसतन 9 घंटे किसी न किसी स्क्रीन के सामने बिताते हैं। कई साल तक केवल टीवी को 'बेबीसीटर' कहा जाता था, अब उसकी जगह कम्प्यूटर, टैबलेट और स्मार्टफोन ने ले ली है। कैज़र फैमिली फाउंडेशन के शोध के अनुसार कुछ अभिभावकों ने बच्चों के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उपयोग के नियम बना रखे हैं। दो तिहाई बच्चे ऐसे हैं, जिन्होंने बताया कि उनके अभिभावकों के पास ऐसे कोई नियम नहीं हैं।
हार्वर्ड से जुड़ी क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट एवं बेस्ट सेलिंग पुस्तक 'द बिग डिसकनेक्ट: प्रोटेक्टिंग चाइल्डहुड एंड फैमिली रिलेशनशिप इन द डिजिटल एज' की लेखिका कैथरीन स्टीनर कहती हैं- सालों से हम ही बच्चों को स्क्रीन थमा रहे हैं, इससे उनमें ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कम हो रही है, बजाय खुद खुश रहने के तरीके सीखने के। पहले यह देखें कि बच्चे की जरूरतें क्या हैं। उसे कल्पना करने के लिए समय चाहिए, चिंताओं से निपटना सीखना है। उसे जरूरत है माता- पिता के साथ विचारों को साझा करने की, जो उसे आश्वस्त करते हैं।
सार्वजनिक रूप से देखिए, बिना स्क्रीन के भी बच्चों का जीवन बेहतर है। वे रोमांच से पूर्ण होते हैं एवं अन्य लोगों के बारे में जानने को उत्सुक रहते हैं। उनमें सामाजिक और भावनात्मक बुद्धिमानी का विकास होता है। जो जीवन में सफल होने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। सिएटल में चिल्ड्रन्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के दिमित्री क्रिस्ताकी कहते हैं- जो बच्चे हिंसा या एक्शन वाले गेम खेलते हैं, वे उसे असली जीवन में लागू करने की सोचते हैं या उनके खुद के व्यवहार में ये चीजें दिखती हैं।
जर्नल ऑफ यूथ एंड एडोलेसेंस में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार जो बच्चे हिंसा वाले वीडियो गेम या टीवी शो देखते हैं। उनकी प्रवृत्ति ज्यादा गुस्से वाली देखी गई है। वे अपने बड़ों से, टीचर से और यहां तक की दोस्तों के साथ भी झगड़ते हैं। यही नहीं कम्प्यूटर, टैबलेट और वीडियो गेम जैसी डिवाइस का लगातार उपयोग बच्चों के शरीर के लिए भी हानिकारक है। उनकी उंगलियों, कलाई और हाथ की नसों में दर्द उठने लगता है। आंखों की रक्तवाहिकाएं संकुचित हो जाती हैं साथ ही उनकी गर्दन और पीठ में भी दर्द उठने के केस देखे गए हैं।
गैजेट्स का ज्यादातर इस्तेमाल करने वाले लोग आंखों की परेशानी से ग्रसित रहते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार स्मार्टफोन्स के ज्यादा इस्तेमाल से लोगों को अंधेपन, नजर का कमजोर होना जैसी परेशानियों का सामना तक करना पड़ता है और रात में स्मार्टफोन का इस्तेमाल करना आजकल लोगों की आम आदतों में से एक है। ऐसे में कुछ आसान सी टिप्स के चलते यूजर्स की आंखों पर किसी भी गैजेट की स्क्रीन से जरूर कम नुकसान होगा। अगर आप नियमित तौर पर स्मार्टफोन, टैबलेट या कम्प्यूटर का इस्तेमाल कर रहे हैं तो ध्यान रखें इस नियम का। हर 20 मिनट में आपसे 20 फिट दूर रखी किसी भी वस्तु को 20 सेकंड तक देखें ये labnol.org की एक ट्रिक है जो आखों की एक्सरसाइज करवाती है । इससे यूजर्स की आंखों को आराम मिलता है और उनकी एक्सरसाइज भी हो जाती है । अगर आपको काम में समय का ध्यान नहीं रहेगा तो विंडोज से लिए ब्रेकटेक ( BreakTaker ) या एप्पल मैक के लिए टाइम आउट ( Time Out ) प्रोग्राम का इस्तेमाल भी कर सकते हैं । ये प्रोग्राम्स यूजर्स के ब्रेक लेने के लिए ही बनाए गए है।
आप चाहें किसी भी गैजेट का इस्तेमाल कर रहे चहें स्मार्टफोन, या कम्प्टूर या टैबलेट अपने गैजेट की डिस्प्ले सेटिंग्स जरूर बदलिए। अगर कम्प्यूटर में ब्राइटनेस, शार्पनेस, या कलर बढ़े हुए हैं तो उसे कम कर दीजिए। ज्यादा ब्राइट या शार्प स्क्रीन यूजर्स की आंखों पर बहुत ज्यादा प्रेशर पड़ता है। इसके अलावा, अगर गैजेट का फॉन्ट साइज बहुत ज्यादा ही छोटा है तो यूजर्स को लंबे डॉक्युमेंट्स पढ़ने में काफी परेशानी होगी। इसलिए अपने गैजेट की डिस्प्ले सेटिंग्स को ऐसा सेट कीजिए जिससे आंखों को नुकसान कम से काम हो। अगर आपकी स्क्रीन HD है तो 45 % कलर और ब्राइटनेस से भी अच्छी डिस्प्ले क्वालिटी आएगी और आंखों को नुकसान भी कम होगा।
किसी भी गैजेट का इस्तेमाल करने से पहले ध्यान रखें की उसकी पोजीशन क्या है। अगर आप कम्प्यूटर का इस्तेमाल कर रहे हैं तो मॉनिटर कम से कम 20-30 इंच की दूरी पर जरूर रखें। इसी के साथ, ज्यादा रौशनी वाले कमरे में गैजेट्स का इस्तेमाल करें। कम रौशनी वाले कमरे में इस्तेमाल से गैजेट्स की स्क्रीन ज्यादा रिफ्लेक्ट करती है और यूजर्स की आंखों पर प्रेशर बहुत ज्यादा पड़ता है।
Add new comment