मैं मंदिर हूँ तेरा !

Raising Hand Towards Lord!

"प्रभु ने धरती की मिट्टी से मनुष्य को गढ़ा और उसके नथनों में प्राणवायु फूँक दी। इस प्रकार मनुष्य एक सजीव सत्व बन गया।"

जीवन ईश्वर के द्वारा दिया गया एक अमूल्य वरदान है। जिसके लिए हमें सदैव ईश्वर का आभारी होना चाहिए। मगर कभी-कभी मनुष्य अपने जीवन से परेशान होकर एवं क्रोध में आकर आत्महत्या का विचार मन में लाता है। ईश्वर की सबसे सुन्दर कृति को नष्ट करना चाहता है। मनुष्य को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि ईश्वर ने प्रत्येक व्यक्ति की रचना अपने हाथो से की एवं उसे अपना प्रतिरूप बनाया है । हमारा शरीर ईश्वर का मंदिर है, और हमे ईश्वर के मंदिर को नष्ट नहीं करना चाहिए। आप अपने  जीवन में चाहे कितनी भी बुरी परिस्थिति क्यों न हो, एक बात हमेशा याद रखे , आप ईश्वर के प्रिय पुत्र-पुत्रियां है। और वह आपसे अत्यंत प्रेम करता है। जब आपको अपने जीवन में कुछ समझ न आये तो ईश्वर पर भरोसा रखकर अपने जीवन कि बागड़ोर उसके हाथो में दे दे! ईश्वर आपको निराशा से बाहर निकलेगा और मार्गदर्शन प्रदान करेगा।

हम चाहे जो भी हो ईश्वर हमे अवश्य ही स्वीकारता है। चाहे हमने कितने ही पाप क्यों न किये हो, चाहे हम बार बार पाप करके थक गए हो, लेकिन वह हमारे पाप क्षमा करके नहीं थकता है। 

नबी इसायाह ने अपनी पुस्तक इसायाह का ग्रन्थ अध्याय  53 वचन संख्या 2 से 6 में एक ऐसे व्यक्ति के बारे में लिखा है, जो प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा तिरस्कृत और तुच्छ समझा जाता था। उसका जीवन पूरी तरह दुख और शोक से भरा हुआ था। परन्तु जिस दुख को उसने सहन किया वे उसके स्वयं के नहीं थे। उसे छेदित किया गया, और कुचल दिया गया। यह सब कुछ उसके साथ हमारे पापों के कारण किया गया। उसके घावों द्वारा हम भले-चंगे हो गये हैं। 

प्रिय विश्वासियों, यह सब प्रभु येसु ने सहा ताकि हमारे सारे पाप क्षमा किये जा सकें। कुछ भी दोषभावना का भार जो आप अपने ऊपर लिये हुए हैं, यह जान लें कि वह आपको क्षमा करेगा यदि आप विनम्रता पूर्वक पश्चाताप करते हुए उसे अपना मुक्तिदाता स्वीकार करेंगे। स्तोत्र ग्रन्थ अध्याय 50 वाक्य संख्या 15 में वचन कहता  है :-

"संकट के समय मेरी दुहाई दो। मैं तुम्हारा उद्धार करूँगा और तुम मेरा सम्मान करोगे।"

अब तक जो कुछ भी आपने किया वह येसु के क्षमा करने के लिए बहुत बुरा नहीं है। उसके कई चुने हुए सेवकों में से कुछ ने बड़े पाप किए थे, जैसे मूसा ने हत्या की, दाऊद ने हत्या और व्यभिचार किया, प्रेरित पौलुस ने शारीरिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार। परन्तु फिर भी, उन्होंने ईश्वर में क्षमा और नवजीवन  को प्राप्त किया। कुरिन्थियों के नाम दूसरे पत्र, अध्याय 5 वचन संख्या 17 में संत पौलूस कहते है :-

"यदि कोई मसीह के साथ एक हो गया है, तो वह नयी सृष्टि बन गया है। पुरानी बातें समाप्त हो गयी हैं और सब कुछ नया हो गया है।"

इसी वचन के आधार पर आपको  ह्रदय से पश्चाताप करके, ईश्वर से जुड़कर, ईश्वर से एक मन होना है। तभी हम ईश्वर में क्षमा एवं नवजीवन को प्राप्त कर सकते है।

प्रिय विश्वासियों, ईश्वर उस वस्तु को ठीक करने के लिए तैयार खड़ा रहता है जो "टूटी" हुई हो, अर्थात् वह जीवन जो अभी आपके पास है, वह जीवन जिसे आप आत्महत्या करके समाप्त करना चाहते हैं। भविष्यवक्ता नबी इसायाह ने अपनी पुस्तक इसायाह का ग्रन्थ अध्याय 61 वचन संख्या 1 से 3 में लिखा है कि - प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है, क्योंकि उसने मेरा अभिषेक किया है। उसने मुझे भेजा है कि मैं दरिद्रों को सुसमाचार सुनाऊँ, दुःखियों को ढारस बँधाऊँ; बन्दियों को छुटकारे का और कैदियों को मुक्ति का सन्देश सुनाऊँ; प्रभु के अनुग्रह का वर्ष और ईश्वर के प्रतिशोध का दिन घोषित करूँ; विलाप करने वालों को सान्त्वना दूँ, राख के बदले उन्हें मुकुट पहनाऊँ, शोक-वस्त्रों के बदले आनन्द का तेल प्रदान करूँ और निराशा के बदले स्तुति की चादर ओढाऊँ। उनका यह नाम रखा जोयेगाः

“सदाचार के बलूत, प्रभु की महिमा प्रकट करने वाला उद्यान।"

आप भी ईश्वर से उद्धार की आशा रख सकते है। येसु  के पास आएँ और उसको अपने आनन्द और उपयोगिता को बहाल करने दें। जब आप अपने जीवन में एक नया कार्य आरम्भ करने के लिए उस पर भरोसा करते हैं, तो जिस आनन्द को आपने खो दिया है उसे वह पुर्नस्थापित करने की प्रतिज्ञा करता है और आपको संभाले रखने के लिए एक नया आत्मा आपको देता है। आपका टूटा हुआ मन उसके लिए मूल्यवान् है। वह आपके जीवन का नवनिर्माण अवश्य करेगा। प्रभु येसु, आपके विचारों और कदमों का मार्गदर्शन करेगा। प्रतिदिन अपने वचनो के द्वारा हमारी अगुवाई करेगा।

प्रभु येसु प्रतिदिन अपने पवित्र वचनो के द्वारा आपके विचारों और कदमों  को मार्गदर्शन प्रदान करेगा। स्तोत्र ग्रन्थ अध्याय 32 वचन संख्या 08 में लिखा है -

''मैं तुझे शिक्षा दूँगा, तुम को मार्ग दिखाऊँगा; तुम्हें परामर्श दूँगा और तुम्हारी रक्षा करूँगा।''

आत्महत्या ईश्वर के विरुद्ध एक गंभीर पाप है। यदि आप आत्महत्या द्वारा अपना जीवन समाप्त करते है तो आप ईश्वर के मंदिर को समाप्त करते है। उस व्यक्ति के विश्वास के बारे में गंभीर संदेह उठ खड़ा होता है जो अपने आपको ख्रीस्तीय कहलाने का दावा करता है परन्तु फिर भी आत्महत्या करता है। ऐसी कोई भी परिस्थिति नहीं है, जो कि किसी को इसके लिए सही ठहराए, विशेष रूप से एक ख्रीस्तीय व्यक्ति को, कि वह स्वयं अपने जीवन को खत्म कर दे। ख्रीस्तीयों को अपने जीवन को ईश्वर को समर्पित करते हुए जीने की बुलाहट दी गई है, और उन्हें कब मरना है का निर्णय केवल और केवल ईश्वर के हाथ में है। कुरिन्थियों के नाम अपने पहले पत्र, अध्याय 03 वचन संख्या 16 व 17 में सन्त पौलुस कहते है -

"क्या आप यह नहीं जानते कि आप ईश्वर के मन्दिर हैं और ईश्वर का आत्मा आप में निवास करता है? यदि कोई ईश्वर का मन्दिर नष्ट करेगा, तो ईश्वर उसे नष्ट करेगा; क्योंकि ईश्वर का मन्दिर पवित्र है और वह मन्दिर आप लोग हैं।"

इसलिए ईश्वर हमे यह अनुमति नहीं देता की हम शरीर रूपी ईश्वर के मंदिर को नष्ट करे। यदि हम शरीर रूपी ईश्वर के मंदिर को नष्ट करेंगे तो ईश्वर हमे अपने अनंत जीवन के भागी नहीं बनाएगा।

यदि आप अपने मुक्तिदाता के रूप में प्रभु येसु पर भरोसा करते हैं, तो इन शब्दों को अपने मन में ईश्वर से कहें -

"हे ईश्वर , मुझे अपने जीवन में आप की आवश्यकता है। जो कुछ मैंने किया उसके लिए कृपा करके मुझे क्षमा करें। मैं अपना भरोसा आप पर रखता हूँ और विश्वास करता हूँ कि आप ही मेरे मुक्तिदाता है। कृपा करके मुझे शुद्ध करें, चंगा करें, और मेरे जीवन में आनन्द को स्थापित करें। मेरे प्रति आपके प्रेम के लिए मैं आपको सारे ह्रदय से धन्यवाद देता हूँ !

प्रवीण परमार

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