अर्ध्दांगरोगी

सन्त लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार

05:17-26

 

ईसा किसी दिन शिक्षा दे रहे थे। फ़रीसी और शास्त्री पास ही बैठे हुए थे। वे गलीलिया तथा यहूदिया के हर एक गाँव से और येरूसालेम से भी आये थे। प्रभु के सामर्थ्य से प्रेरित हो कर ईसा लोगों को चंगा करते थे।

उसी समय कुछ लोग खाट पर पड़े हुए एक अर्ध्दांगरोगी को ले आये। वे उसे अन्दर ले जा कर ईसा के सामने रख देना चाहते थे।

भीड़ के कारण अद्र्धागरोगी को भीतर ले जाने का कोई उपाय न देख कर वे छत पर चढ़ गये और उन्होंने खपड़े हटा कर खाट के साथ अर्ध्दांगरोगी को लोगों के बीच में ईसा सामने उतार दिया।

उनका विश्वास देख कर ईसा ने कहा, "भाई! तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं"।

इस पर शास्त्री और फ़रीसी सोचने लगे, "ईश-निन्दा करने वाला यह कौन है? ईश्वर के सिवा कौन पाप क्षमा कर सकता है?"

उनके ये विचार जान कर ईसा ने उन से कहा, "मन-ही-मन क्या सोच रहे हो?

अधिक सहज क्या है-यह कहना, ’तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं; अथवा यह कहना उठो, और चलो फिरो’?;

परन्तु इसलिए कि तुम लोग यह जान लो कि मानव पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है, वह अर्ध्दांगरोगी से बोले मैं तुम से कहता हूँ, उठो और अपनी खाट उठा कर घर जाओ।

उसी क्षण वह सब के सामने उठ खड़ा हुआ और अपनी खाट उठा कर ईश्वर की स्तुति करते हुए अपने घर चला गया।

सब-के-सब विस्मित हो कर ईश्वर की स्तुति करते रहे। उन पर भय छा गया और वे कहते थे, "आज हमने अद्भुत कार्य देखे हैं"।

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