अनुग्रह और सत्य ईसा मसीह द्वारा

सन्त योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार

01:01-18

 

आदि में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द ईश्वर था।

वह आदि में ईश्वर के साथ था।

उसके द्वारा सब कुछ उत्पन्न हुआ। और उसके बिना कुछ भी उत्पन्न नहीं हुआ।

उस में जीवन था, और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था।

वह ज्योति अन्धकार में चमकती रहती है- अन्धकार ने उसे नहीं बुझाया।

ईश्वर को भेजा हुआ योहन नामक मनुष्य प्रकट हुआ।

वह साक्षी के रूप में आया, जिससे वह ज्योति के विषय में साक्ष्य दे और सब लोग उसके द्वारा विश्वास करें।

वह स्वयं ज्यांति नहीं था; उसे ज्योति के विषय में साक्ष्य देना था।

शब्द वह सच्च ज्योति था, जो प्रत्येक मनुष्य का अन्धकार दूर करती है। वह संसार में आ रहा था।

वह संसार में था, संसार उसके द्वारा उत्पन्न हुआ; किन्तु संसार ने उसे नहीं पहचाना।

वह अपने यहाँ आया और उसके अपने लोगों ने उसे नहीं अपनाया।

जितनों ने उसे अपनाया, और जो उसके नाम में विश्वास करते हैं, उन सब को उसने ईश्वर की सन्तति बनने का अधिकार दिया।

वे न तो रक्त से, न शरीर की वासना से, और न मनुष्य की इच्छा से, बल्कि ईश्वर से उत्पन्न हुए हैं।

शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया। हमने उसकी महिमा देखी। वह पिता के एकलौते की महिमा-जैसी है- अनुग्रह और सत्य से परिपूर्ण।

योहन ने पुकार-पुकार कर उनके विषय में यह साक्ष्य दिया, "यह वहीं हैं, जिनके विषय में मैंने कहा- जो मेरे बाद आने वाले हैं, वह मुझ से बढ़ कर हैं; क्योंकि वह मुझ से पहले विद्यमान थे।"

उनकी परिपूर्णता से हम सब को अनुग्रह पर अनुग्रह मिला है।

संहिता तो मूसा द्वारा दी गयी है, किन्तु अनुग्रह और सत्य ईसा मसीह द्वारा मिला है।

किसी ने कभी ईश्वर को नहीं देखा; पिता की गोद में रहने वाले एकलौते, ईश्वर, ने उसे प्रकट किया है।

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