मरुस्थलीकरण और सूखे ने 3.2 अरब लोगों को किया प्रभावित। 

संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव अन्तोनियो गुत्तेरेस ने मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने हेतु समर्पित विश्व दिवस 17 जून को एक सन्देश जारी कर चेतावनी दी है कि यदि प्रकृति के ह्रास को रोकने के लिये उपयुक्त उपाय नहीं किये गये तो भविष्य संकट में पड़ सकता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव अन्तोनियो गुत्तेरेस ने मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने हेतु समर्पित विश्व दिवस 17 जून को एक सन्देश जारी कर चेतावनी दी है कि यदि प्रकृति के ह्रास को रोकने के लिये उपयुक्त उपाय नहीं किये गये तो भविष्य संकट में पड़ सकता है।
महासचिव गुत्तेरेस ने कहा, "मानवता प्रकृति के विरुद्ध एक अथक, आत्म-विनाशकारी युद्ध छेड़ रही है। "मानवता प्रकृति पर एक अथक, आत्म-विनाशकारी युद्ध छेड़ रही है। जैव विविधता घट रही है, ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता बढ़ रही है, और हमारा प्रदूषण दूर-दराज के द्वीपों से लेकर सबसे ऊंची चोटियों तक बढ़ता चला जा रहा है। जैव विविधता घट रही है, ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता बढ़ रही है, और हमारा प्रदूषण दूर-दराज के द्वीपों से लेकर सबसे ऊंची चोटियों तक पाया जा सकता है। हमें प्रकृति के साथ शांति बनानी चाहिए।"
संयुक्त राष्ट्र महासचिव गुत्तेरेस ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि भूमि, जो मानवजाति की सबसे बड़ी सहयोगी है, आज जलवायु परिवर्तन और कृषि, शहरों तथा बुनियादी ढांचे के विस्तार के परिणामस्वरूप पीड़ित है। उन्होंने कहा, भूमि क्षरण विश्व के 3.2 अरब लोगों की खुशहाली एवं जीवन पर दुष्प्रभाव डाल रहा है। "भूमि क्षरण" जैव विविधता को नुकसान पहुँचाता तथा COVID-19 जैसी संक्रामक महामारियों के उद्भव को प्रश्रय देता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव ने कहा कि मरुस्थलीकरण और सूखा पहले से अस्तित्व में बने उजाड़ प्रदेशों का विस्तारीकरण नहीं है बल्कि यह मानव गति-विधियों का परिणाम है। उन्होंने कहा कि अधारणीय रूप से की गई कृषि भूमि से उर्वरक एवं पौष्टित तत्वों को छीन लेती है तथा भूमि को सूखा एवं उजाड़ बना देती है।  
इसके अतिरिक्त, उन्होंने कहा, हवा और पानी का क्षरण क्षति को बढ़ाता है, ऊपरी मिट्टी को दूर ले जाता है और धूल और रेत के अत्यधिक अनुपजाऊ मिश्रण को पीछे छोड़ देता है। उन्होंने कहा कि इन कारकों का संयोजन उपजाऊ एवं उर्वरक भूमि को बंजर रेगिस्तान में परिणत कर देता है।  
महासचिव गुत्तेरेस ने कहा, मरुस्थलीकरण एक वैश्विक मुद्दा है, जिसका दुनिया भर में जैव विविधता, पर्यावरण-सुरक्षा, गरीबी उन्मूलन, सामाजिक-आर्थिक स्थिरता और सतत विकास पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। मरुस्थलीकरण एक वैश्विक मुद्दा है, जिसका दुनिया भर में जैव विविधता, पर्यावरण-सुरक्षा, गरीबी उन्मूलन, सामाजिक-आर्थिक स्थिरता और सतत विकास पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
लगभग दो अरब लोग शुष्क भूमि क्षेत्रों में पारिस्थितिक तंत्र पर निर्भर हैं, जिनमें से 90 प्रतिशत विकासशील देशों में रहते हैं। उन्होंने सचेत किया कि मरुस्थलीकरण के परिणामस्वरूप आगामी 10 वर्षों में लगभग पाँच करोड़ से अधिक लोग विस्थापित हो सकते हैं।  

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