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नारियों के प्रति हिंसा असहनीय।
21 जून से 13 जुलाई तक, जेनेवा में चल रहे 47वें मानवाधिकार संघ की संगोष्टी में लिंग, नारी, शिक्षा का अधिकार, अंतरराष्ट्रीय एकता और डिजिटल मध्यामों में गोपनीय विषयों पर चर्चा करते हुए कहा गया कि नारियों के प्रति हिंसा असहनीय है। लिंग हिंसा खासकर बलात्कार के संबंध में 28 जून को परमधर्मपीठयस्थायी प्रेरिताई ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के सामने इस बात को दुहराया कि नारियों के विरूध किसी तरह की हिंसा और उसके संबंध में चुप्पी और उदासीनता अपने में असहनीय है।
परमधर्मपीठ ने यौन हिंसा के परिणामस्वरूप गर्भाधारण बच्चों के अधिकारों और सम्मान की पुष्टि करते हुए कहा,“ये बच्चे महिलाओं के खिलाफ हुई घृणित हिंसा के समपार्श्व शिकार नहीं बने। बल्कि, हमें उन्हें समर्थन और प्यार देने की जरूरत है।” “मानव जीवन और प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान, गर्भाधान से लेकर प्राकृतिक मृत्यु तक, हिंसा की संस्कृति पर काबू पाने की प्रारंभिक बिंदु है”।
एकता के संबंध में वाटिकन ने 24 जून को अपने बयान में इस बात पर जोर दिया कि महामारी के इस समय में एकता हमारे लिए पहले की तुलना में अधिक जरुरी है। संत पापा के विचारों को व्यक्त कहते हुए वाटिकन ने कहा कि कोविड-19 के समय व्यक्तिगतवाद का वायरस पूरे विश्व में फैला गया है जहाँ हम प्रेम और मानवता के नियमों के बदले बाजार या बैद्धिक संपति के नियमों को मानव समाज में हावी होता पाते हैं। अतः राष्ट्रीय और स्थानीय सभी स्तरों पर इस बात की मांग की जाती है कि हम पारस्परिक एकता को बढ़ावा दें न की प्रतियोगिता की भावना को, जिससे हम अलगाववाद से उत्पन्न चुनौतियों का ठोस और सशक्त समाधान खोज निकाल सकें। इस संबंध में परमधर्मपीठ ने कोविड-19 से लड़ने और टीकों की सार्वभौमिक पहुंच को सुनिश्चित करने हेतु बौद्धिक संपदा अधिकारों पर छूट को लागू करने के लिए राज्यों, बहुपक्षीय एजेंसियों और निजी भागीदारों से अपने आह्वान को दोहराया।
परमधर्मपीठ स्थायी प्रेरिताई ने “शिक्षा के लिए एक मजबूत और समग्र दृष्टिकोण” की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए कहा कि शिक्षा सभों के लिए उपलब्ध हो। धन द्वारा निर्धारित की जाने वाली शिक्षा समाज पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव डालेगी और सामाजिक आर्थिक रेखाओं के साथ असमानताओं को और बढ़ाएगी। परमधर्मपीठ ने बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में माता-पिता की मौलिक भूमिका पर भी प्रकाश डालते हुए कहा,“वास्तव में माता-पिता के पास यह सुनिश्चित करने का अधिकार और जिम्मेदारी है कि उनके बच्चों को एक पर्याप्त और समग्र शिक्षा प्राप्त हो जो बच्चों के शारीरिक, मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक मानवीय आयामों को बढ़ावा देने में सक्षम हो”।
डिजिटल दुनिया के संदर्भ में गोपनीय के अधिकारों की चर्चा करते हुए 02 जुलाई को वाटिकन ने इस बात पर जोर दिया कि डिजिटल दुनिया में बच्चों के सम्मान की सुरक्षा को अधिक प्रभावी ढंग से संबोधित करने की जरूरत है जो समाज के हर व्यक्ति, विशेष कर “माता-पिता” से निष्ठा की माँग करती है, जो उनके सम्पूर्ण मानवीय विकास के मूलभूत अंग हैं।
वाटिकन के स्थायी मिशन ने नकारात्मक दृष्टिकोण के खिलाफ चेतावनी दी "जिसमें बच्चों के अधिकार माता-पिता के वैध अधिकारों और जिम्मेदारियों के विरोद्ध जाते हैं, इसके बजाय एक सकारात्मक दृष्टिकोण अपने की आवश्यकता है” जो रचनात्मक और आवश्यक भूमिका को गले लगाता हो। तदनुसार, निर्धारित गर्भ निरोधकों और गर्भपात के लिए अनिवार्य माता-पिता की अधिसूचना और/या सहमति को “निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जाना चाहिए”, क्योंकि “अंतराराष्ट्रीय कानून” प्रजनन, यौन जानकारी और सेवाओं के तथाकथित अधिकार को मान्यता नहीं देता है।
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