रिटियों का चमत्कार

संत मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार
6:  34-44

ईसा ने नाव से उतर कर एक विशाल जनसमूह देखा। उन्हें उन लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों की तरह थे और वह उन्हें बहुत-सी बातों की शिक्षा देने लगे। जब दिन ढलने लगा, तो उनके शिष्यों ने उनके पास आ कर कहा, "यह स्थान निर्जन है और दिन ढल चुका है। लोगों को विदा कीजिए, जिससे वे आसपास की बस्तियों और गाँवों में जा कर खाने के लिए कुछ खरीद लें।" ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, "तुम लोग ही उन्हें खाना दे दो"। शिष्यों ने कहा, "क्या हम जा कर दो सौ दीनार की रोटियाँ ख़रीद लें और उन्हें लोगों को खिला दें?" ईसा ने पूछा, "तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ है? जा कर देखो।" उन्होंने पता लगा कर कहा, "पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ"। इस पर ईसा ने सब को अलग-अलग टोलियों में हरी घास पर बैठाने का आदेश दिया। लोग सौ-सौ और पचास-पचास की टोलियों में बैठ गये। ईसा ने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ ले ली और स्वर्ग की ओर आँखें उठा कर आशिष की प्रार्थना पढ़ी। वे रोटियाँ तोड-तोड कर अपने शिष्यों को देते गये, ताकि वे लोगों को परोसते जायें। उन्होंने उन दो मछलियों को भी सब में बाँट दिया। सबों ने खाया और खा कर तृप्त हो गये। रोटियों और मछलियों के बचे हुए टुकड़ों से बारह टोकरे भर गये। रोटी खाने वाले पुरुषों की संख्या पाँच हज़ार थी।

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