मेरा मांस सच्चा भोजन है और मेरा रक्त सच्चा पेय।

सन्त लूकस का सुसमाचार 
9:11-17 

किन्तु लोगों को इसका पता चल गया और वे भी उनके पीछे हो लिये। ईसा ने उनका स्वागत किया, ईश्वर के राज्य के विषय में उन को शिक्षा दी और बीमारों को अच्छा किया। अब दिन ढलने लगा था। बारहों ने उनके पास आ कर कहा, ''लोगों को विदा कीजिए, जिससे वे आसपास के गाँवों और बस्तियों में जा कर रहने और खाने का प्रबन्ध कर सकें। यहाँ तो हम लोग निर्जन स्थान में हैं।''  ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, ''तुम लोग ही उन्हें खाना दो''। उन्होंने कहा, ''हमारे पास तो केवल पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं। क्या आप चाहते हैं कि हम स्वयं जा कर उन सब के लिए खाना ख़रीदें?'' वहाँ लगभग पाँच हज’ार पुरुष थे। ईसा ने अपने शिष्यों से कहा, ''पचास-पचास कर उन्हें बैठा दो''। उन्होंने ऐसा ही किया और सब को बैठा दिया। तब ईसा ने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ ले लीं, स्वर्ग की ओर आँखें उठा कर उन पर आशिष की प्रार्थना पढ़ी और उन्हें तोड़-तोड़ कर वे अपने शिष्यों को देते गये ताकि वे उन्हें लोगों में बाँट दें। सबों ने खाया और खा कर तृप्त हो गये, और बचे हुए टुकड़ों से बारह टोकरे भर गये।

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