मुरदों को अपने मुरदे दफनाने दो।

संत लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार
9: 51-62 

अपने स्वर्गारोहण का समय निकट आने पर ईसा ने येरुसालेम जाने का निश्चय किया और सन्देश देने वालों को अपने आगे भेजा। वे चले गये और उन्होंने ईसा के रहने का प्रबन्ध करने समारियों के एक गाँव में प्रवेश किया। लोगों ने ईसा का स्वागत करने से इनकार किया, क्योंकि वे येरुसालेम जा रहे थे। उनके शिष्य याकूब और योहन यह सुन कर बोल उठे, ''प्रभु! आप चाहें, तो हम यह कह दें कि आकाश से आग बरसे और उन्हें भस्म कर दे''। पर ईसा ने मुड़ कर उन्हें डाँटा और वे दूसरी बस्ती चले गये। ईसा अपने शिष्यों के साथ यात्रा कर रहे थे कि रास्ते में ही किसी ने उन से कहा, ''आप जहाँ कहीं भी जायेंगे, मैं आपके पीछे-पीछे चलूँगा''। ईसा ने उसे उत्तर दिया, ''लोमड़ियों की अपनी माँदें हैं और आकाश के पक्षियों के अपने घोंसले, परन्तु मानव पुत्र के लिए सिर रखने को भी अपनी जगह नहीं है''। उन्होंने किसी दूसरे से कहा, ''मेरे पीछे चले आओ''। परन्तु उसने उत्तर दिया, ''प्रभु! मुझे पहले अपने पिता को दफ़नाने के लिए जाने दीजिए''। ईसा ने उस से कहा, ''मुरदों को अपने मुरदे दफनाने दो। तुम जा कर ईश्वर के राज्य का प्रचार करो।'' फिर कोई दूसरा बोला, ''प्रभु! मैं आपका अनुसरण करूँगा, परन्तु मुझे अपने घर वालों से विदा लेने दीजिए''। ईसा ने उस से कहा, ''हल की मूठ पकड़ने के बाद जो मुड़ कर पीछे देखता है, वह ईश्वर के राज्य के योग्य नहीं''।

Add new comment

8 + 7 =