बहत्तर शिष्यों का प्रेषण

सन्त लूकस  के अनुसार पवित्र  सुसमाचार
अध्याय 10:1-9
इसके बाद प्रभु ने अन्य बहत्तर शिष्य नियुक्त किये और जिस-जिस नगर और गाँव में वे स्वयं जाने वाले थे, वहाँ दो-दो करके उन्हें अपने आगे भेजा।उन्होंने उन से कहा, "फ़सल तो बहुत है, परन्तु मज़दूर थोड़े हैं; इसलिए फ़सल के स्वामी से विनती करो कि वह अपनी फ़सल काटने के लिए मज़दूरों को भेजे। जाओ, मैं तुम्हें भेडि़यों के बीच भेड़ों की तरह भेजता हूँ। तुम न थैली, न झोली और न जूते ले जाओ और रास्तें में किसी को नमस्कार मत करो। जिस घर में प्रवेश करते हो, सब से पहले यह कहो, ’इस घर को शान्ति!’ यदि वहाँ कोई शान्ति के योग्य होगा, तो उस पर तुम्हारी शान्ति ठहरेगी, नहीं तो वह तुम्हारे पास लौट आयेगी। उसी घर में ठहरे रहो और उनके पास जो हो, वही खाओ-पियो; क्योंकि मज़दूर को मज़दूरी का अधिकार है। घर पर घर बदलते न रहो। जिस नगर में प्रवेश करते हो और लोग तुम्हारा स्वागत करते हैं, तो जो कुछ तुम्हें परोसा जाये, वही खा लो। वहाँ के रोगियों को चंगा करो और उन से कहो, ’ईश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ गया है’।

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