प्रार्थना पर यीशु का शिक्षण

संत लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार
11: 1-13

 

एक दिन ईसा किसी स्थान पर प्रार्थना कर रहे थे। प्रार्थना समाप्त होने पर उनके एक शिष्य ने उन से कहा, "प्रभु! हमें प्रार्थना करना सिखाइए, जैसे योहन ने भी अपने शिष्यों को सिखाया"। ईसा ने उन से कहा, "इस प्रकार प्रार्थना किया करोः पिता! तेरा नाम पवित्र माना जाये। तेरा राज्य आये। हमें प्रतिदिन हमारा दैनिक आहार दिया कर। हमारे पाप क्षमा कर, क्योंकि हम भी अपने सब अपराधियों को क्षमा करते हैं और हमें परीक्षा में न डाल।" फिर ईसा ने उन से कहा, "मान लो कि तुम में कोई आधी रात को अपने किसी मित्र के पास जा कर कहे, ’दोस्त, मुझे तीन रोटियाँ उधार दो, क्योंकि मेरा एक मित्र सफ़र में मेरे यहाँ पहुँचा है और उसे खिलाने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है’ और वह भीतर से उत्तर दे, ’मुझे तंग न करो। अब तो द्वार बन्द हो चुका है। मेरे बाल-बच्चे और मैं, हम सब बिस्तर पर हैं। मैं उठ कर तुम को नहीं दे सकता।’ मैं तुम से कहता हूँ-वह मित्रता के नाते भले ही उठ कर उसे कुछ न दे, किन्तु उसके आग्रह के कारण वह उठेगा और उसकी आवश्यकता पूरी कर देगा। "मैं तुम से कहता हूँ-माँगो और तुम्हें दिया जायेगा; ढूँढ़ो और तुम्हें मिल जायेगा; खटखटाओ और तुम्हारे लिए खोला जायेगा। क्योंकि जो माँगता है, उसे दिया जाता है; जो ढूँढ़ता है, उसे मिल जाता है और जो खटखटाता है, उसके लिए खोला जाता है। "यदि तुम्हारा पुत्र तुम से रोटी माँगे, तो तुम में ऐसा कौन है, जो उसे पत्थर देगा? अथवा मछली माँगे, तो मछली के बदले उसे साँप देगा? अथवा अण्डा माँगे, तो उसे बिच्छू देगा? बुरे होने पर भी यदि तुम लोग अपने बच्चों को सहज ही अच्छी चीज़ें देते हो, तो तुम्हारा स्वर्गिक पिता माँगने वालों को पवित्र आत्मा क्यों नहीं देगा?"

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