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कल की चिंता मत करो
सन्त मत्ती का सुसमाचार
6: 24-34
"कोई भी दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता। वह या तो एक से बैर और दूसरे से प्रेम करेगा, या एक का आदर और दूसरे का तिरस्कार करेगा। तुम ईश्वर और धन - दोनों की सेवा नहीं कर सकते। मैं तुम लोगों से कहता हूँ, चिन्ता मत करो- न अपने जीवन-निर्वाह की, कि हम क्या खायें और न अपने शरीर की, कि हम क्या पहनें। क्या जीवन भोजन से बढ कर नहीं ? और क्या शरीर कपडे से बढ़ कर नहीं? आकाश के पक्षियों को देखो। वे न तो बोते हैं, न लुनते हैं और न बखारों में जमा करते हैं। फिर भी तुम्हारा स्वर्गिक पिता उन्हें खिलाता है, क्या तुम उन से बढ़ कर नहीं हो? चिंता करने से तुम में से कौन अपनी आयु घड़ी भर भी बढा सकता है? और कपडों की चिन्ता क्यों करते हो? खेत के फूलों को देखो। वे कैसे बढ़ते हैं! वे न तो श्रम करते हैं और न कातते हैं। फिर भी मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि सुलेमान अपने पूरे ठाट-बाट में उन में से एक की भी बराबरी नहीं कर सकता था। रे अल्पविश्वासियों! खेत की घास आज भर है और कल चूल्हे में झोंक दी जायेगी। यदि उसे भी ईश्वर इस प्रकार सजाता है, तो वह तुम्हें क्यों नहीं पहनायेगा? इसलिए यह कहते हुए चिंता मत करो- हम क्या खायें, क्या पियें, क्या पहनें। इन सब चीजों की खोज में गैर-यहूदी लगे रहते हैं। तुम्हारा स्वर्गिक पिता जानता है कि तुम्हें इन सभी चीजों की ज़रूरत है। तुम सब से पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और ये सब चीजें, तुम्हें यों ही मिल जायेंगी। कल की चिन्ता मत करो। कल अपनी चिन्ता स्वयं कर लेगा। आज की मुसीबत आज के लिए बहुत है।
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