अशर्फ़ियों का दृष्टान्त

सन्त लूकस का सुसमाचार
अध्याय 19:11-18

जब लोग ये बातें सुन रहे थे, तो ईसा ने एक दृष्टान्त भी सुनाया; क्योंकि ईसा को येरूसालेम के निकट पा कर वे यह समझ रहे थे कि ईश्वर का राज्य तुरन्त प्रकट होने वाला है। उन्होंने कहा, "एक कुलीन मनुष्य राजपद प्राप्त कर लौटने के विचार से दूर देश चला गया। उसने अपने दस सेवकों को बुलाया और उन्हें एक-एक अशर्फ़ी दे कर कहा, ‘मेरे लौटने तक व्यापार करो’। "उसके नगर-निवासी उस से बैर करते थे और उन्होंने उसके पीछे एक प्रतिनिधि-मण्डल द्वारा कहला भेजा कि हम नहीं चाहते कि वह मनुष्य हम पर राज्य करे। "वह राजपद पा कर लौटा और उसने जिन सेवकों को धन दिया था, उन्हें बुला भेजा और यह जानना चाहा कि प्रत्येक ने व्यापार से कितना कमाया है। पहले ने आ कर कहा, ‘स्वामी! आपकी एक अशर्फ़ी ने दस अशर्फि़य़ाँ कमायी हैं’। स्वामी ने उस से कहा, ‘शाबाश, भले सेवक! तुम छोटी-से-छोटी बातों में ईमानदार निकले, इसलिए तुम्हें दस नगरों पर अधिकार मिलेगा’। दूसरे ने आ कर कहा, ‘स्वामी! आपकी एक अशर्फ़ी ने पाँच अशर्फि़याँ कमायी हैं’ और स्वामी ने उस से भी कहा, ‘तुम्हें पाँच नगरों पर अधिकार मिलेगा’। अब तीसरे ने आ कर कहा, ’स्वामी! देखिए, यह है आपकी अशर्फ़ी। मैंने इसे अँगोछे में बाँध रखा था। मैं आप से डरता था, क्योंकि आप कठोर हैं। आपने जो जमा नहीं किया, उसे आप निकालते हैं और जो नहीं बोया, उसे लुनते हैं।’ स्वामी ने उस से कहा, ‘दुष्ट सेवक! मैं तेरे ही शब्दों से तेरा न्याय करूँगा। तू जानता था कि मैं कठोर हूँ। मैंने जो जमा नहीं किया, मैं उसे निकालता हूँ और जो नहीं बोया, उसे लुनता हूँ। तो, तूने मेरा धन महाजन के यहाँ क्यों नहीं रख दिया? तब मैं लौट कर उसे सूद के साथ वसूल कर लेता।’ और स्वामी ने वहाँ उपस्थित लोगों से कहा, ‘इस से वह अशर्फ़ी ले लो और जिसके पास दस अशर्फि़याँ हैं, उसी को दे दो’। उन्होंने उस से कहा, ‘स्वामी! उसके पास तो दस अशर्फि़याँ हैं’। "मैं तुम से कहता हूँ - जिसके पास कुछ है, उसी को और दिया जायेगा; लेकिन जिसके पास कुछ नहीं है, उस से वह भी ले लिया जायेगा, जो उसके पास है। और मेरे बैरियों को, जो यह नहीं चाहते थे कि मैं उन पर राज्य करूँ, इधर ला कर मेरे सामने मार डालो’। इतना कह कर ईसा येरूसालेम की ओर आगे बढ़े।

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