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1 मई, श्रमिक संत जोसेफ का पर्व।
1 मई मजदूरों के अधिकारों की मान्यता के लिए ट्रेड यूनियन संघर्ष की प्रतीकात्मक तिथि है यही कारण है कि इसे मजदूर दिवस कहा जाता है।
कलीसिया 1 मई को संत जोसेफ का पर्व मनाती है, जो येसु के पालक बाप और एक बढ़ाई थे। इस पर्व की स्थापना 1 मई 1955 को संत पापा पियुस 12वें ने की थी ताकि काम की पवित्रता को देखा जा सके एवं काम के लिए न्याय सुनिश्चित किया जा सके। जो कार्य के पीड़ित एवं अपमानित चेहरे को बदल देता और एक सच्चा मानवीय चेहरा प्रदान करता है।
यही उद्देश्य था कि संत पिता पियुस 12वें ने बढ़ाई संत जोसेफ को मजदूरों का संरक्षक घोषित किया। उन्होंने 1 मई 1955 को संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में अक्ली के बैनर पर उपस्थित करीब 2 लाख मजदूरों के सामने कहा था, "कितनी बार हमने मजदूरों के प्रति कलीसिया के प्रेम को पुष्ट और व्यक्त किया है। फिर भी अत्याचारी निंदा करता है कि "कलीसिया श्रमिकों के खिलाफ पूंजीवाद का सहयोगी है।" हमेशा धार्मिक उद्देश्यों से प्रेरित, व्यापक रूप से फैली कलीसिया ने मार्क्सवादी समाजवाद की विभिन्न प्रणालियों की निंदा की है, और आज भी उनकी निंदा करती है, क्योंकि यह उसका स्थायी कर्तव्य है और पुरुषों को उन धाराओं और प्रभावों से बचाना चाहती है, जो उनके शाश्वत उद्धार को खतरे में डालते हैं।
लेकिन कलीसिया इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकती या उसपर असफल नहीं हो सकती कि उसकी हालत को सुधारने के प्रयास में कार्यकर्ता किसी ऐसे साधन से परस्पर विरोध की स्थिति में जाएँ, जो प्रकृति के अनुरूप नहीं है, ईश्वर के आदेश के विपरीत है और इस उद्देश्य के साथ वे सांसारिक वस्तुओं के लिए समर्पित हो जाएँ।
उन्होंने कहा था कि कौन पुरोहित या ख्रीस्तीय है जो गहराई से उठने वाली आवाज के सामने बहरा हो सकता है जो सच्चे ईश्वर की दुनिया में न्याय एवं भाईचारा की मांग करती है?
यह उस समय के इतिहासकारों द्वारा रिपोर्ट किया गया था, वाटिकन रेडियो ने पोप पियुस 12वें के भाषण और घटना की कमेंट्री का प्रसारण किया था, इस घटना को छोटी तरंगों पर प्रसारित किया था। प्रसारण शाम 5.15 बजे फ्रेंच, अंग्रेजी, जर्मन और चेक भाषाओं में प्रसारित की गई थी।
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