स्वर्गारोहणः आशा और सांत्वना की निशानी

पोप फ्रांसिस ने मरियम के स्वर्गारोहण पर्व के अवसर पर देवदूत प्रार्थना पाठ के पूर्व विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को अपना संदेश दिया। उन्होंने विश्वासियों को ईश्वरीय वरदानों हेतु कृतज्ञ होने और ईश्वरीय महिमा करने का आहृवान किया।

जब मानव ने चन्द्रमा पर कदम रखे तो उसने एक वाक्य कही जो अपने में विख्यात हो गया, “एक मानव के लिए यह एक छोटा कदम है, मानवता के लिए एक बहुत बड़ी छलांग”। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि मानवता ने एक ऐतिहासिक लक्ष्य को प्राप्त किया है। लेकिन आज, माता मरियम का स्वर्गारोहण त्योहार मनाते हुए हम अनंत विजय का एक बड़ा महोत्सव मानते हैं। माता मरियम ने स्वर्ग पर अपने कदम रखे हैं, वो केवल आत्मा से स्वर्ग में प्रवेश नहीं करती बल्कि सह-शरीर स्वर्ग में उठा रखी जाती हैं। नाजरेत की दीन-हीन कुंवारी का स्वर्ग में पैर रखना सारी मानवता के लिए एक वृहद कदम है। इस धरती पर यदि हम भाई-बहनों के रुप में जीवनयापन नहीं करते हैं तो चन्द्रमा पर कदम रखना हमारे लिए अर्थहीन प्रतीत होता है। लेकिन हममें से एक जो सह-शरीर स्वर्ग में निवास करती हैं हमें एक आशा से भर देता है, यह हमें इस बात का एहसास दिलाती है कि हम सभी मूल्यवान है, अपने में पुनर्जीवित होने के भागीदार हैं। ईश्वर हमारे शरीर को व्यर्थ में नष्ट होने नहीं देते हैं। ईश्वर के साथ कुछ भी बर्बाद नहीं होता है। माता मरियम में हम अपने लक्ष्य प्राप्ति को पाते हैं और हम अपनी आखों के सामने उस यात्रा के कारणों को देखते हैं, जहाँ हम दुनियावानी चीजों की चाह नहीं करते जो क्षणभंगुर हैं अपितु उस अनंत विरासत की खोज करते जो युगों तक बनी रहती है। माता मरियम हमारे लिए वो सितारा हैं जो हमें राह दिखलाती हैं। वे जैसा की धर्मसभा हमें शिक्षा देती है, “इस धरती पर हमारी यात्रा के समय वे ईश प्रजा हेतु आशा और सांत्वना की एक निश्चित निशानी है।"

पोप फ्रांसिस ने कहा कि हमारी माता हमें क्या सलाह देती हैंॽ सुसमाचार पाठ में पहली बात वह हमें कहती है, “मेरी आत्मा प्रभु का गुणगान करती है” (लूका.1.46)। इस बात को सुन-सुन कर आदी हो गये हम इसके अर्थ पर ध्यान नहीं देते हैं। इतालवी भाषा में “मानीफिकारे” का शब्दिक अर्थ है, “बड़ा बनाना”, विस्तृत करना है। मरियम ईश्वर के नाम को “महिमान्वित” करती, उसका विस्तार करती है। उनके जीवन में मुसीबतें थीं फिर भी अपने जीवन की हर परिस्थिति में वह ईश्वरीय नाम की महिमा करती है। हम कितनी बार, बहुधा अपने को जीवन की कठिन परिस्थितियों में उलझा लेते और भयों से अपने को ग्रस्ति पाते हैं। माता मरियम के साथ ऐसा नहीं होता क्योंकि वे ईश्वर की महिमा को अपने जीवन के प्रथम स्थान में रखती हैं। उनके इस मनोभाव से ईश महिमा का गान उत्प्रेरित होता है, यहाँ हम खुशी की उत्पत्ति को पाते हैं- खुशी मुसीबतों की अनुपस्थिति से नहीं होती, जो कभी न कभी हमारे जीवन में आ ही जाते हैं बल्कि खुशी हमारे लिए ईश्वरीय उपस्थिति में रहने से मिलती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ईश्वर महान हैं। वे दीन-हीन लोगों पर अपनी कृपा दृष्टि करते हैं।

वास्तव में, मरियम अपनी दीनता में बने रहते हुए ईश्वर के “महान कार्यों” का गुणगान करती हैं जिसे ईश्वर ने उनके लिये किये हैं। वे कौन-कौन से कार्य हैंॽ सर्वप्रथम आश्चर्यजनक जीवन का उपहार- मरियम कुंवारी हैं यद्यपि उन्हें गर्भाधरण का वरदान मिला, उसी तरह उनकी कुटुबिनी एलिजबेथ जो बूढ़ी हो चली हैं एक बच्चे की मां बनने वाली हैं। ईश्वर दीन-जनों के साथ आश्चर्यजनक कार्य करते हैं जो स्वयं को बड़ा नहीं समझते लेकिन विश्वास के कारण ईश्वर को अपने जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करते हैं। ईश्वर अपनी करूणा को उनमें विस्तृत करते जो उन पर भरोसा रखते हैं, और वे नम्र लोगों को ऊपर उठाते हैं।

पोप फ्रांसिस ने कहा कि हम अपने में पूछ सकते हैं- क्या हम ईश्वर की प्रशंसा करते हैंॽ क्या हम उन महान कार्यों के लिए जिन्हें उन्होंने हमारे लिए किये हैं अपनी कृतज्ञता अर्पित करते हैंॽ प्रति दिन वे हमें विभिन्न वरदानों से विभूषित करते हैं क्योंकि वे हमें प्रेम करते और हमें क्षमा करते हैं, उनकी कोमलता हेतु क्या हम उनका आभार व्यक्त करते हैंॽ उन्होंने हमें अपनी माता को दिया है वे हमारे जीवन की राह में भाई-बहनों को देते हैं, और वे क्यों हमारे लिए स्वर्ग को खोलते हैंॽ यदि हम इन अच्छी बातों को भूल जायें तो हमारा हृदय सिकुड़ जाता है। वहीं यदि हम मरियम की तरह महान उपहारों की याद करते जिसे ईश्वर ने हमारे लिए किये हैं और कम से कम दिन में एक बार भी ईश्वर की महिमा करते, उनकी स्तुति करते तो हम अपने जीवन में बड़ा कदम लेते हैं। पोप फ्रांसिस ने जोर देते हुए कहा कि हम कम से कम दिन में एक पर ईश्वर प्रदत्त उपहारों के लिए उनका धन्यवाद करें। यह हमारे हृदय को विस्तृत करेगा और हम बृहद खुशी का अनुभव करेंगे। हम स्वर्ग का द्वार माता मरियम से निवेदन करें कि वे रोज दिन की शुरू हेतु हमारे लिए कृपा की याचना करें जिससे हम स्वर्ग की ओर अपनी निगाहें उठाते हुए ईश्वर को कह सके, “धन्यवाद प्रभु”।

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