कार्डिनल मार्टिनेज सोमालो का निधन। 

कार्डिनल एदवार्दो मार्टिनेज सोमालो का निधन मंगलवार को वाटिकन में हुआ। वे 94 साल के थे। उन्होंने वाटिकन को एक लम्बी और प्रतिष्ठित सेवा दी है। "महान गरिमा" और "गंभीर संयम": ये शब्द पोप बेनेडिक्ट सोलहवें के शब्दों में स्वर्गीय कार्डिनल मार्टिनेज सोमालो के गुणों की एक तस्वीर पेश करते हैं।
31 मार्च 2007 को कार्डिनल मार्टिनेज सोमालो ने उम्र सीमा के कारण कार्डिनल चेम्बरलेन पद से इस्तीफा देने के लिए संत पापा बेनेडिक्ट 16वें से आवेदन किया था। इसके उत्तर में पोप बेनेडिक्ट 16 ने जो पत्र लिखा था वह कार्डिनल की महानता को प्रकट करता है।  
पोप बेनेडिक्ट 16वें ने 4 अप्रैल 2007 को अपने पत्र में कार्डिनल सोमालो के लिए कई संज्ञाओं एवं विशेषणों का प्रयोग किया था और कहा था कि उन्होंने "परिश्रम", "योग्यता", और "प्रेम" ने परमधर्मपीठ की सेवा की।  
कार्डिनल मार्टिनेज को कई बार रोम भेजा गया था। वे स्पेन थे और पुरोहित बनने से पहले ही परमधर्मपीठीय स्पानी कॉलेज और परमधर्मपीठीय ग्रेगोरियन विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने रोम गये थे। जहाँ से उन्होंने कैनन लॉ में स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी।  
सन् 1950 में उनका पुरोहिताभिषेक हुआ था और वे अपने धर्मप्रांत कालाहोर्रा वाई ला कालज़ादा-लोग्रोनो लौटे, उसके बाद वे परमधर्मपीठीय कलीसियाई अकादमी में एक कोर्स में भाग लेने के लिए पुनः रोम आये।
अगस्त 1956 में उन्होंने वाटिकन राज्य सचिवालय में सेवा देना शुरू किया तथा स्पानी विभाग के अधिकारी नियुक्त किये गये। इस तरह वे 1968 में, संत पापा पौल छटवें के साथ 39 अंतरराष्ट्रीय यूखरिस्तीय कॉन्ग्रेस मनाने कोलम्बिया की प्रेरितिक यात्रा पर भी गये थे।  
उन्होंने वाटिकन में 14 साल बिताये, उसके बाद अप्रैल 1970 में ग्रेट ब्रिटेन के लिए प्रेरितिक प्रतिनिधि नियुक्त किये गये किन्तु छः महीनों बाद वापस वाटिकन बुलाये गये, एक मूल्यांकनकर्ता के रूप में और फिर तत्कालीन स्थानापन्न, महाधर्माध्यक्ष जियोवानी बेनेली के प्रत्यक्ष सहयोगी के रूप में। उसके बाद वे पुनः पाँच साल तक वाटिकन में सेवा दी।
12 नवम्बर 1975 को संत पापा पौल छटवें ने उन्हें महाधर्माध्यक्ष नियुक्त किया एवं उन्हें प्रेरितिक राजदूत के रूप में कोलम्बिया भेजा। वहाँ से वे चार साल बाद वाटिकन लौटे।

कर्डिनल
मई 1979 को संत पिता जॉन पौल द्वितीय ने उन्हें वाटिकन राज्य सचिव नियुक्त किया जहाँ उन्होंने 1988 तक अपनी सेवा दी, उसके बाद पोप जॉन पौल द्वितीय ने उन्हें कार्डिनल नियुक्त किया। उसी साल वे दिव्य उपासना एवं संस्कारों के अनुष्ठान के लिए बने परमधर्मपीठीय धर्मसंघ के अध्यक्ष नियुक्त हुए और 1992 तक काम किया। उसके बाद उन्होंने 2004 तक समर्पित जीवन एवं धर्मसंघी जीवन के लिए गठित परमधर्मपीठीय धर्मसंघ के संचालक रहे।  

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