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स्पर्श
मानव होने के नाते हममें से प्रत्येक जन किसी न किसी प्रकार से एक धार्मिक नेता हैं। माता पिता के रूप में, शिक्षक शिक्षिका के रूप में, पड़ोसी के रूप में या मित्र के रूप में। इन सभी क्षमताओं में हम दूसरों को प्रभावित करते हैं, और नैतिक प्रवृति तथा दूसरों में विश्वास की शक्ति के लिए उत्तरदयी हैं । मानव होने के नाते येसु में भी एक विशिष्ट व्यक्तित्व की भावना कूट- कूट कर भरी थीं, जो हम सबों में भी होनी चाहिए।
कोढ़ की बीमारी एक अभिशाप और कलंक के रूप में देखी जाती थी। वे अछूत थे। अत : वे लोगों या भीड़ से दूर ही रहते थे। ईसा ने ऐसे लोगों को भी स्पर्श कर चंगाई प्रदान किया। उनका स्पर्श न केवल शारीरिक चंगाई प्रदान करता है, किन्तु मानसिक और आध्यात्मिक चंगाई भी देता है। वह इस प्रकार कि जो लोग अछूत या कलंक समझे जाते थे, उन्हें समाज से दूर रहना था। जो भी उनके सम्पर्क में आता वह भी समाज से बहिष्कृत किया जाता था। लेकिन यदि वही इन्सान पूर्ण रूप से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर लेता, तो समाज उसे पुनः अपना लेता था कुछ रस्म, रीति रिवाजों को पूरा करने के पश्चात्। कहने का तात्पर्य यह है कि चंगाई प्राप्त व्यक्ति पुन: समाज के अभिन्न अंग बन जाते थे। अत: येसु का स्पर्श मन और दिल को भी छू जाता है। जीवन से निराश और हताश व्यक्ति के कन्धे पर कोई यदि हाथ फेर दे तो उसे बहुत सान्त्वना मिलती है। उसके जीवन में आशा का संचार होता है। यही काम येस अपने जीवन काल में किया करते थे। क्या हूँ जीवन में निराश एवं हताश व्यक्ति को आशा की एक किरण बनकर सँभालने के लिए तैयार है?
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