सम्बन्ध 

आज के सुसमाचार की घोषणा में ईश्वर की इच्छा के प्रति निष्ठा येसु के सभी अनुयायियों का एक परिवार बनाता है। येसु ने एक सच्चे अनुयायी की पहचान जन्म के आधार पर नहीं, और न ही पद के आधार पर, न उसकी योग्यता, गुण, वित्तीय साधनों के आधार पर की, बल्कि एकमात्र जीवन के दैनिक कार्यों में सच्ची निष्ठा के आधार पर की। येसु हमें कहते हैं कि प्रत्येक कार्य इस प्रकार करो, मानो वह परिवार के संदर्भ में किया गया है। दूसरा व्यक्ति मेरा भाई, पिता, माता या बहन है। एक दूसरे के बीच के संबंध को गहराई को हम प्राकृतिक माप, जैसे रक्तसंबंध या लगाव से माप नहीं सकते हैं। वास्तविक संबंध तब स्थापित होता है जब एक दिल और एक मन से लोग एक दूसरे से जुड़े होते हैं, जिसे हम आत्मिक संबंध कहते हैं।
ईश्वर से हमारा संबंध तब स्थापित हो सकता है जब हम ईश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए अपने को समर्पित करते हैं। जब येसु को अपने माता, भाई एवं बहनों के आने की सूचना दी जाती है, तो इसी बात को येसु स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि जो ईश्वर की इच्छा को पूरा करते हैं वे ही उनके माता- पिता, भाई- बहन हैं। येसु सारी मानव जाति के साथ अपना सही संबंध होने की बात को स्पष्ट करते हैं। येसु का कथन निश्चय ही किसी भी प्रकार से अपनी माँ, भाई और बहन का अनादर करने वाली नहीं थी, परन्तु उपर्युक्त कथन के द्वारा प्रभु येसु हमें शिक्षा देते हैं कि उनसे सही नाता रिश्ता रखने के लिए हमें ईश्वर की इच्छा पूरी करना अति आवश्यक है।

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