सत्य की परिपूर्णता

मानव जाति अक्सर अधूरे सत्यों, अपसिद्धान्तों एवं मिथ्यात्व में विश्वास करने की ओर अभिमुख होती है। मनुष्य उसी में चैन की साँस लेता है कि मुझे कुछ और खोजने की या विश्वास करने की आवश्यकता नहीं। जितना मैं जानता हूँ उतना मेरे लिए काफी है। शिष्यों की बात भी कुछ ऐसी ही थी। उन्हें येसु के बारे में पूरी जानकारी नहीं थी। येसु के चमत्कारों एवं चिन्हों का उद्देश्य था येसु में पूरा विश्वास होना। चमत्कार एवं चिह्न हमें प्रभु के राज्य की ओर अभिमुख करते हैं। सच तो यह है कि मसीह को दुःख भोगना होगा और मरना होगा। जब येसु ठोस रूप से यह बात बताते हैं कि उनका भविष्य क्या होगा, तब वे विचलित हो जाते हैं। क्योंकि वे येसु का सही नाम पहचान के मनुष्यत्व एवं ईश्वरत्व स्वभाव से बिल्कुल अपरिचित एवं अनभिज्ञ थे। आज येसु हममें से प्रत्येक को आह्वान करते हैं, कि हम येसु के बारे में अपने अधूरे विश्वास, अधूरे सत्य को दूर करें और उनके विचारों के अनुकूल अपने को ढालें।

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