रचना

अन्य सृष्टि की भाँति मनुष्य की रचना शब्द मात्र से नहीं हुई है। ईश्वर ने उसे अपने अनुरूप अपने हाथों से बनाया। उसे बुद्धि और स्वतंत्रता दी। पूरी सृष्टि पर अधिकार दिया। आज हमारा फर्ज बनता है कि ईश्वर की सुन्दर सृष्टि को और बेहतर एवं सुन्दर बनायें। गुणों और क्षमताओं का उपयोग सेवा एवं मानव समाज के उत्थान में लगाएँ। 
यहूदियों के लिए नियम का अर्थ था दस आज्ञाएँ और बाइबल के प्रथम पाँच पुस्तकें। सुसमाचार में ईसा और फरीसियों तथा शास्त्रियों के विचारों में आकाश- पाताल के अन्तर को दर्शाया गया है। सवाल यह है कि ईसा के शिष्य पुरखों की परम्परा के अनुसार क्यों नहीं चलते? वे क्यों अशुद्ध हाथों से रोटी खाते हैं? हाथ धोने का, स्वच्छता और शुद्धता से कोई संबंध नहीं है सिर्फ वह एक रिवाज है। ईसा दो बातों को लेकर फरीसियों और शास्त्रियों पर दोषारोपण करते हैं।
1. वाह्याडम्बर वाह्याडम्बर का अर्थ, किसी का सम्पूर्ण जीवन बिना ईमानदारी से जीना जिसका कोई मतलब नहीं रह जाता है। नियम , रीति- रिवाज और प्रथाओं तक ही अपने को सीमित करना और अपने को एक अच्छा व्यक्ति या धर्मी व्यक्ति मान लेना।
2. ईश्वर के नियम के बदले मानव की प्रवीणता पर जोर- फरीसियों और शास्त्रियों के अनुसार उनके जीवन के मार्गदर्शन के लिए ईश्वर को सुनने पर निर्भर नहीं करता है। अपनी बुद्धिमता सच्चे धर्म की आधारशिला नहीं हो सकती है। धर्म हमारे मन की उपज नहीं वरन ईश्वर की आवाज सुनना और उसके अनुरूप जीना होता है।

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