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येसु ही मसीहा है।
येसु ने योहन बपतिस्ता द्वारा यर्दन नदी में बपतिस्मा ग्रहण कर स्वयं को चालीस दिनों तक अपने लक्ष्य और मिशन कार्य के लिए तैयार किया। येसु ने इस धरती पर के अपने जीवन के लक्ष्य और मिशन कार्य को नबी इसायस के शब्दों में संक्षेपित किया। “ प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है, क्योंकि उसने मेरा अभिषेक किया है। उसने मुझे भेजा है कि मैं दरिद्रों को सुसमाचार सुनाऊँ।" (इसायस 61 : 1-3)। इस तरह हम देखते हैं कि येसु इसायस के शब्दों को अपने मिशन कार्य के लिए एक उद्देश्य तथा योजना के रूप में प्रस्तुत करते हैं। आज के युग में राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में हम इसे येसु का घोषणा पत्र कह सकते हैं। इसे हम येसु की आत्माभिव्यक्ति भी कह सकते हैं।
येसु के उद्देश्य तथा उनकी योजनाएँ विपत्तियों से पीड़ित लोगों के लिए एक आशा, सांत्वना एवं दिलासा का आधार स्वरूप हैं। संतों, पुरोहितों, और धर्मसंघियों के लिए प्रेरणास्रोत है। येसु ने अपने वचनों को जीया। कहने का तात्पर्य है कि उन्होंने अपने घोषणापत्र को पूरा किया। येसु के शिष्यों को इन बातों को समझने में समय लगा। उनके उपदेशों में अधिकार और आदेश भरा था। फिर भी आम जनता ने उनके कथनों पर विश्वास किया। येसु के पुनरुत्थान के बाद शिष्यों को सारी बातें क्रमश: धीरे- धीरे समझ में आने लगीं। सभों ने यह अच्छी तरह समझ लिया कि येसु ही आने वाले मसीहा हैं।
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