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"यदि आप चाहें तो"
येसु ख्रीस्त के इस धरा पर आगमन से पहले और स्वयं उनके समय में लोगों की आम धारणा यह थी कि कोढ़, चर्मरोग, दिल का दौरा आदि बीमारियाँ पापों और शापों के कारण आती हैं। जब येसु ने एक नगर में प्रवेश किया, तब एक कोढ़ी उनके सामने मुँह के बल गिर पड़ा और चंगाई प्राप्त करने के लिए अनुनय विनय करने लगा। येसु ने उसका स्पर्श कर उसे चंगाई प्रदान किया। रोग और पाप प्रायः एक साथ काम करते हैं। दोनों मे घनिष्ठता है। अतः येसु ने न केवल उसके रोग को चंगा किया वरन् उसके पापों को भी क्षमा किया। उन्होंने उस चंगा किये गये व्यक्ति को याजकों को दिखाने के लिए कहा।
येसु जब भी किसी को चंगा करते थे, समान्यता उनका स्पर्श करके ही करते थे। इसका कारण यह है कि वे न केवल शारीरिक चंगाई प्रदान करना चाहते थे, लेकिन उनके दिलों का भी स्पर्श करना चाहते थे। दिलों को स्पर्श करने का तात्पर्य है कि व्यक्ति स्वयं में संपूर्ण बदलाव महसूस करे, अर्थात् शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक बदलाव का अनुभव करे। लेकिन यह तभी संभव है जब हम स्वयं इसके लिए तैयार हों। अगर हममें इसकी चाह नहीं है तो वे भी कुछ नहीं कर पायेंगे। उस कोढ़ी व्यक्ति ने अपनी चंगाई की चाहत को येसु के सामने मुँह के बल गिरकर और यह कहकर उजागर किया कि “यदि आप चाहें तो", "मैं तो चाहता ही हूँ" (इसीलिए मैं आपके सामने नतमस्तक हूँ)। अपने आप को आपके चरणों में समर्पित करता हूँ। आगे आपकी इच्छा। ईश्वर तो चाहते ही हैं कि हम सबका भला हो । हमारा भी यह दायित्व है कि हम अपने विश्वास को प्रकट करें।
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