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"मैं तुम्हारा ईश्वर होऊँगा और तुम मेरी प्रजा होगे।"
ईश्वर ने मनुष्य जाति के साथ एक विधान ठहराया और उसके अनुसार वे कहते हैं "मैं तुम्हारा ईश्वर होऊँगा और तुम मेरी प्रजा होगे।" यह विधान तब तक बना रहेगा जब तक मनुष्य उनके आदेशों, नियमों और उनकी आज्ञाओं का सटीकतापूर्वक पालन करता रहे और इसी के द्वारा उसकी स्तुति, महिमा तथा गुणगान करे। ईश्वर की चुनी हुई प्रजा होने का यही मापदण्ड है।
सुसमाचार में हमें येसु बताते हैं कि हम पिता का अनुसरण करें। पिता ने हमें अपना प्रतिरूप बनाया, प्यार किया और सदा ही प्यार करते हैं। वे आज हमें और एक कदम आगे बढ़कर जीने को कहते हैं कि दुनिया की नजर से नहीं, पर पिता की नजर से दुनिया को देखें। हमारे विरुद्ध कोई जाता है तो हम माफ करें। प्यार से उसके कल्याण की बात करें। हम मानव कमजोरी के कारण दूसरे पर रूठ जाते हैं, अपना निर्णय सुनाते हैं, बातचीत बंद कर देते हैं, लेकिन पिता ईश्वर ऐसा नहीं करते हैं वे प्यार और बड़ी उम्मीद से हमलोगों के लौट आने की राह देखते हैं। हमारे क्षमा माँगने के पहले ही हमें क्षमा करते हैं। हमें कृपाओं से सम्पन्न करते हैं कि हम भी सब को क्षमा कर सकें। सभों की भलाई की कामना करें। जैसे स्वर्गिक पिता भले और बुरे दोनों पर अपना सूर्य उगाता है तथा धर्मी और अधर्मी दोनों पर पानी बरसाता है। इस प्रकार वे किसी का पक्षपात नहीं करते वरन सभों को एक नजर से देखते हैं। अतः हम उन्हीं का अनुसरण कर अपने दोषियों को क्षमा करें और पिता के पदचिह्नों पर चलते रहें। हमें इसके लिए पिता बल प्रदान करे ।
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