मेरे पीछे चले आओ

दुनिया में हमारा संबंध दो प्रकार से है, ईश्वर और अपने पड़ोसी से। साथ ही इनके प्रति हमारी जिम्मेदारी भी बनती है। मृत्यु के पश्चात् हर एक से सिर्फ एक ही सवाल प्रभु पूछेगे। जो संत मत्ती 25 : 35-36 में वर्णित है जब मैं - भूखा, प्यासा था, परदेशी था, नंगा था, बीमार अथवा बन्दी था, तब क्या तुमने मेरी मदद की? हमारा क्या उत्तर होगा? 
एक बार मैं एक गली से गुजर रहा था। एक भिखारी बच्चे को देखा जो अपनी भूख मिटाने के लिए कचरे के डब्बे में कुछ खोज रहा था, पत्ते में एक रोटी मिली। जब वह खुशी- खुशी जाने लगा तो दो कुत्ते दौड़ते हुए आए और उसकी रोटी छीन ली। मुझे गुस्सा आया उस ईश्वर पर, जिसने उसकी रचना की है लेकिन दूसरे ही पल मुझे याद आया। प्रभु कहते हैं कि उसकी देख- भाल करने के लिए मैंने तुम्हारी सृष्टि की है क्या तुम उसकी देखभाल करने के लिए तैयार हो? भले कार्यों के द्वारा हम सींचे हुए उद्यान के सदृश बनेंगे जिसकी जलधारा कभी सूखती नहीं है। 
"मेरे पीछे चले आओ" यह लेवी के लिए ईश्वर का खुला निमंत्रण था जिसे उसने स्वीकारा। नाकेदार की गिनती चोर और हत्यारों में होती है। तब सोच सकते हैं उसे कितनी खुशी हुई होगी कि ऐसे लोगों के मित्र या खोजनेवाले ईसा हैं। एक भोज के द्वारा अपनी कृतज्ञ प्रकट करनी चाही। समाज में मानव आनन्द मनाने के लिए एवं चिन्ताओं से मुक्त होने उत्सव में भाग लेते हैं, पर कुछ जले पर नमक छिड़कते हैं। लेवी खुश है पर लोग नहीं। वे पद्दलितों और पापियों के साथ आनंद नहीं मना सकते है। वे नकारात्मक सोच के वाहक बनते है। क्या मैं समाज, परिवार और बस्ती में नकारात्मक सोच का प्रचारक तो नहीं हूँ?

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