मेरे पीछे चले आओ

मैं बलिदान नहीं, बल्कि दया चाहता हूँ। मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।

'बुलाहट' ईश्वर का अनमोल वरदान है। इस बुलाहट के अनुसार आचरण करने के लिए संत पौलुस हमें आह्वान करते हैं। बुलाहट धार्मिक जीवन तक ही सीमित नहीं है। एक आदर्श ईसाई जीवन जीना हर ईसाई का कर्तव्य है, बुलाहट है। इस बुलावे के अनुसार हमारा जीवन औरों से भिन्न होना है। ईसाई बुलाहट तीन केन्द्र बिन्दुओं पर आधारित है- 
1) मेरा ईश्वर से व्यक्तिगत सम्बन्ध। 
2) मेरा पड़ोसी के प्रति संबंध और 
3) मेरा कलीसियाई कार्य में योगदान। 

आज के दोनों पाठ इन्हीं बिन्दुओं की ओर चिन्तन करने के लिए प्रेरणा देते हैं । सन्त पौलुस कहते हैं कि हममें से प्रत्येक बुलाये गये हैं। इसलिए इस बुलावे के अनुसार हमें दूसरों के साथ सौम्य एवं सहनशील बनना है। ईश्वर ने कलीसियाई कार्य को आगे बढ़ाने के लिए कुछ को सुसमाचार प्रचारक और कुछ को नबी जैसे महान् कार्य सौंपा है। ईश्वर ने जिस मात्रा में देना चाहा उसी मात्रा में कृपा प्रदान है। आज के युवावर्ग ईश्वरीय बुलाहट पहचानने में असमर्थ हो जाते हैं। धार्मिक जीवन की बुलाहट में संख्या कम होती जा रही है। आज कलीसिया सन्त मत्ती का पर्व मनाती है। प्रभु ने उन्हें नाकेदार से महान् प्रेरित एवं सुसमाचार लेखक बनने का वरदान दिया। ईश्वर के वरदानों के बदले में क्या हम सही मात्रा में उन्हें लौटाते है ?

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