मसीहा

जिस परिस्थिति में तथा उद्देश्य से ये पत्र लिखा गया, इसे ध्यान न दें तो आने वाले उद्धरण को हम समझ नहीं पाएँगे। फिलिस्तीन में राजनैतिक उद्धारक के रूप में एक मसीहा की उम्मीद थी। ख्रीस्तीयों पर आक्रमण और अत्याचार हो रहे थे। जीवन जोखिम भरा था। देशद्रोही और विश्वासघाती होने का इल्जाम लगाया जा रहा था। यही वजह है कि लेखक देश के इतिहास की ओर मुड़कर, उन वीरों और नेताओं की वीर गाथा को जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने लड़ाइयाँ लड़ीं। उनकी मृत्यु के कारण उनकी प्रशंसा होती है। पहले पाठ में चर्चित नेता निडरता, विश्वसनीयता और एकाग्रचितता के उदाहरण हैं जिनके अनुसरण करने की जरूरत है। उनके दु: ख और दर्द ने उन्हें हीरो बनाया, लेकिन उनकी वीरता की पूर्णता ख्रीस्त में होती है।
आज के सुसमाचार को सुनने के पश्चात् जरूर बहुतों के मन में एक सवाल पैदा हुआ होगा। आखिर कौन है जो कि प्रेतात्मा भी उनकी बात मानते हैं? ये वही हैं जो न केवल प्रकृति के प्रभु हैं वरन दृश्य और अदृश्य दोनों के मालिक भी। हम पुराने और नए व्यवस्थान दोनों में प्रेतात्मा की चर्चा सुनते हैं वे ईश्वर के द्वारा बनाए और अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग करते हुए ईश्वर के विरुद्ध हो गए। आज उनका एकमात्र धंधा है मनुष्यों का सर्वनाश करना, तहस- नहस करना। ईसा प्रेतात्माओं के भी प्रभु और मालिक हैं। जैसे ही अपदूतग्रस्त मनुष्य को प्रेतात्मा से छुटकारा मिलती है वह अपने को ख्रीस्त की सेवा में समर्पित करता है गैर यहूदी क्षेत्र में ख्रीस्त के सुसमाचार का प्रचारक बनता है।

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