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बपतिस्मा की प्रतिज्ञा
जो लोग ईश्वर की आज्ञाओं का उल्लंघन करते थे, और जो लोग ईश्वर से दूर चले गये थे, उन्हें योहन प्रायश्चित का बपतिस्मा देते थे। वास्तव में जब येसु योहन के पास बपतिस्मा ग्रहण करने के लिए आए, तो उन्हें इस बपतिस्मा की कोई आवश्यकता नहीं थी। इसलिए योहन उन्हें बपतिस्मा देना नहीं चाहते थे, और उन्होंने येसु से कहा भी, "मुझे तो आप से बपतिस्मा लेने की जरूरत है और आप मेरे पास आते हैं" ( मती 3:14 )। लेकिन येसु के 'धर्म कार्यों को पूरा करने अथवा रीतियाँ पूरी करने' के कथन को सुनकर योहन ने उन्हें बपतिस्मा दिया। यहूदी धर्म में जब कोई व्यक्ति ईश्वर के नियमों का पालन उचित तरीके से करता था और उसकी इच्छा के अनुसार जीता था, तो लोग उसे धर्मी व्यक्ति मानते थे। किन्तु येसु के मामले में, धार्मिक कार्यों को किये बगैर ही उन्हें ईश्वर का प्रिय पुत्र घोषित कर दिया गया। इस प्रकार नये नियम के अनुसार, धार्मिकता ईश्वर की इच्छा पर निर्भर है, जो लोगों को येसु की मुक्तिप्रद मृत्यु द्वारा पाप से मुक्ति दिलाती है। धार्मिकता के बारे में यह नयी सोच हमें अपनी बपतिस्मा पर गौर करने के लिए आमंत्रित करती है, ताकि हम बपतिस्मा की प्रतिज्ञाओं को ईश्वर की इच्छा पूरी करते हुए पूर्ण कर सकें।
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