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प्रज्ञा
दुःख- सुख, कठिनाइयाँ, समस्याएँ ये हमारे जीवन के अभिन्न अंग हैं। जब हम इन्हें धैर्यपूर्वक सहते हैं तो बड़ी सीख मिलती है। ये हमारी उम्मीद होगी कि जब संत पौलुस ख्रीस्त के दु: खभोग की चर्चा करते हैं तो हम उसमें सहर्ष शामिल होकर दुनिया की मुक्ति में अपना हाथ बटाएँ। इब्रानी ख्रीस्तीय जीवन, अब तक बाल्यावस्था में है। दु: ख और पीड़ा अन्ततः हमें शांति, अच्छाइयाँ और पवित्रता प्रदान करता है। दु: ख हमें निराशा के गर्त में ढकेल सकता है उदाहरण आप विद्यालय में विफल होकर, पढ़ाई को हमेशा के लिए नकारते हुए अशिक्षित हो सकते हैं या उसे स्वीकार कर मौके से सीख सकते हैं।
यह हम पर निर्भर करता है। ईसा का अपने नगर में आगमन एक साधारण आगमन नहीं था एक गुरु के रूप में वहाँ पधारते हैं। ईसा को नहीं सुनने के दो मुख्य कारण हैं।
1) उन्होंने कहा क्या यह बढ़ई नहीं है ? बढ़ई का अर्थ जो जहाज , घर और मंदिर बनाता है। गाँवों और शहरों में मुर्गी घर से लेकर मकान बनाने वाला, दीवार, छत, फाटक की भी मरम्मत करने वाला, जिसे शिक्षा और कला की जरूरत नहीं है नाजरेत के लोगों ने तिरस्कार किया क्योंकि ईसा इसी प्रकार के कार्य करने वाले व्यक्ति थे।
2) उन्होंने कहा क्या यह मरियम का बेटा नहीं है ? क्या हम इनके भाइयों एवं बहनों को नहीं जानते? मसीह दाऊद के घराने से आने वाले थे। लोगों ने उनमें सुलेमान के समान प्रज्ञा देखनी चाही, उनमें शक्ति और महिमा देखनी चाही, प्रकृति, प्रेतात्मा, बीमारी और मृत्यु के प्रभु की उम्मीद थी मगर साधारण लोगों और ईसा में कोई अन्तर नहीं पाया। एक पुरोहित कहते हैं- यह मेरा शरीर है और तुम्हारे अपराध पाप क्षमा हुए, वे एक साधारण व्यक्ति हैं। हमारे लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है विश्वास।
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