परिवार एवं ख्रीस्तीय मूल्य

समाज में रीति- रिवाज और प्रथा का अपना महत्त्व होता है। इस प्रकार के रीति- रिवाज से ईसा भी अछूते नहीं रहते हैं। हमारे परिवार का आध्यात्मिक जीवन सिमेयोन और अन्ना की तरह हो तथा प्रभु से मिलने के लिए तीव्र अभिलाषा हो जिससे उसकी मुक्ति का अनुभव हम परिवार में करें। 
पारिवारिक जीवन में दुःख एवं कष्ट पवित्र परिवार हमारे लिए एक उदाहरण बनता है जब दु: ख और पीड़ा की तलवार उनके हृदय को छेदती है । बच्चों को विश्वास की शिक्षा- नाजरेत के परिवार के सदस्य ही हमारा परिवार हो जहाँ बच्चे शक्ति, ज्ञान और ईश्वर की कृपा में आगे बढ़ते हैं। ख्रीस्तीय परिवार की पवित्रता और आध्यात्मिकता की कसौटी तब होती है जब वे परिवार की पवित्रता को ईश्वर को समर्पित कर सिर्फ और सिर्फ ईश्वर की इच्छा पूरी करना उद्देश्य रह जाता है। अब सवाल ये उठता है कि क्या हम ईश्वर की इच्छा की खोज करते हैं या हमारे परिवार के लिए उनकी जो योजना है उसे जानना चाहते हैं या तो फिर कि उनकी योजनानुसार एक दूसरे को जीने के लिए मदद करते हैं? ईसा ने पूर्णरूपेण ईश्वर को, पवित्र क्रूस पर उन्हें समर्पित कर दिया, उसी भाँति परिवार की खुशी, आनन्द, संघर्ष, कठिनाइयाँ, समस्याएँ, पीड़ा, दर्द, कष्ट सब कुछ को ईश्वर को समर्पित करें। 
आज हम दु : ख की तलवार को चिन्ता, भय, डर, अपमान, घृणा, अस्वीकृति, निराशा, हताशा के रूप में बेधते हुए देखते हैं। हमारे परिवार की दशा इससे भित्र नहीं है जब परिवार के माता- पिता अपने बच्चों को कई प्रकार की समस्याओं, अपराधों के शिकार, आतंक, बुरी आदत, लत जैसे ड्रग्स, नशापान के शिकार होते देखते हैं। माता मरिया आज के इस पर्व के द्वारा अपने दु: खों को याद दिलाती है कि परिवार और खास तौर पर माँ इस बात पर मनन करते हुए ये पूछे, सवाल करें कि क्या हम कड़ी मेहनत करते हैं, सिर्फ अपने बच्चों को खिलाने के लिए या इससे भी कई गुना महत्त्वपूर्ण चीज ख्रीस्त के मूल्यों, ज्ञान, इच्छे कार्यों को सिखाकर एक सच्चे इन्सान बनाने के लिए? क्या हम नाजरेत के परिवार को प्रेरणा और उदाहरण के स्रोत समझकर अपने परिवार को उनके समान सजाने- सँवारने की कोशिश करते हैं?

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