"ढाढ़स रखो, मैं ही हूँ, डरो मत।"

ईश्वर की असीमित शक्तियों का अहसास कराने, उनके विश्वास को पुख्ता करने के साथ- साथ येसु उनका मनोबल भी बढ़ाना चाहते हैं। इसके अलावा वे स्वयं पिता से जुड़े रहने और उनसे शक्ति और सामय भी पाना चाहते हैं। इसी कारण रोटियों के चमत्कार के बाद ईसा शिष्यों को पहले समुद्र के उस पार भेज देते हैं और स्वयं एकान्त में प्रार्थना करने के लिए चुपचाप चले जाते हैं।
दूसरी ओर उनके शिष्य थके हुए और भयभीत से प्रतीत होते हैं। वे येसु के कार्यों एवं दृष्टाँतों को नहीं समझ पाते हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों में वे कठिनाई महसूस करते हैं। अविश्वास अस्थिरता की ओर ले जाती है। इसका उदाहरण हमें उनके नाव के द्वारा उस पार जाने के क्रम में मिलता है, जब हवा विपरीत दिशा से आती है, और वे इसका सामना करने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। ऐसे ही वक्त में येसु समुद्र पर चलते हुए उनकी ओर आते हैं। अविश्वास इसी बात का चिह्न है। शैतान हर समय योजना बनाता है कि किस प्रकार हमारे विश्वास को कमजोर करे। येसु को समुद्र पर चलते हुए आते देखकर शिष्यों में डर समा गया। वे उन्हें 'भूत- प्रेत' समझ कर चिल्ला उठे, क्योंकि वे प्राकृतिक आपदा से पहले ही घबराये हुए थे। इसी कारण येसु ने प्राकृतिक शक्तियों का सहारा लेकर शिष्यों का हौसला बढ़ाते हुए कहा, "ढाढ़स रखो, मैं ही हूँ, डरो मत।" जब वे खतरे से बाहर हो गए तो तुरन्त ही येसु को प्रभु और गुरु के रूप में अनुभव करने लगे।

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