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जहाँ चाह वहाँ राह
हम सभी ईश्वर की संतान हैं। ईश्वर की संतान होने के नाते हम सभी एक दूसरे से और ईश्वर से जुड़े हुए हैं। हमें एक दूसरे के साहचर्य और सहयोग की जरूरत है। बीमारी की हालत में तो हम स्वयं कुछ भी नहीं कर पाते हैं। इसी समय हमें दूसरों की सहायता की आवश्यकता ज्यादा महसूस होती है। जब येसु के कफरनाहूम में किसी घर पर होने की खबर मिली, तो लोग कई प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त लोगों को येसु के पास ले आये। भीड़ इतनी थी कि येसु के पास पहुँचने की जगह ही नहीं थी। अर्धांगरोगी भी स्वयं से कुछ नहीं कर सकता था। ऐसी परिस्थिति में लोग उसे येसु के पास ले आते हैं।
यह कहावत यहाँ सटीक बैठती है - 'जहाँ चाह वहाँ राह'। जिन लोगों ने उस अर्धांगरोगी को येसु के पास लाया था, उन्हीं लोगों ने भीड़ की वजह से छत खोलकर उसे येसु के ठीक सामने उतारा। यह उनका और अर्धांगरोगी का दृढ़ विश्वास ही था, कि वह ठीक हो जायेगा। येसु ने उन लोगों के विश्वास को डगमगाने नहीं दिया वरन् उस अर्धांगरोगी को स्वास्थ्यलाभ देकर उनके विश्वास को और अधिक मजबूत किया। येसु ने यह कहकर कि 'तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं, उसे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से चंगा कर दिया। अगर हम गौर करें तो पायेंगे कि यहाँ येसु को सब कुछ नया करने का अधिकार पिता के द्वारा प्रदान किया गया है। अर्धांगरोगी भी अपने अन्दर ईश्वर की कृपा को कार्य करने देता है। येसु ख्रीस्त में विश्वास करने के द्वारा हम भी उनकी कृपा को हमारे जीवन में कार्य करने का अनुभव को महसूस कर सकते हैं।
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