चालीसे का दूसरा रविवार- मनन चिंतन। 

आज चालीसे का दूसरा रविवार है। इब्राहीम का नाम सुनते ही हमारे समक्ष एक ऐसी प्रतिमूर्ति नजर आती है जो अपने विश्वास के लिए जाने जाते हैं। बुढ़ापे की संतान हमेशा हर किसी को प्यारी होती है लेकिन अपने पुत्र इसहाक को बलि देने में इब्राहिम को तनिक भी हिचक नहीं हुई, फलस्वरूप ईश्वर प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद प्रदान करते हैं। संत पौलुस दूसरे पाठ में याद दिलाते हैं विश्वासी पिता इब्राहिम ने अपने निज बेटे को बलि चढ़ाने से नहीं हिचका। उसी भाँति हमारे प्यार के कारण येसु को क्रूस पर बलि होनी पड़ी। ईश्वर ने येसु के द्वारा हम सब को दोष मुक्त कर दिया एवं हमें अपनी संतान बना लिया। अगर हम उनकी संतान बन गए हैं तो येसु कैसे हमें दोषी ठहराएँगे। हम तो उनके लोहू द्वारा खरीद लिए गए , पवित्र किए गए और दोष मुक्त किए गए हैं। हम प्यारे पुत्र- पुत्रियाँ बन गए हैं। ईश्वर को धन्यवाद दें।
आज के सुसमाचार में तीन प्रमुख चेलों की व्याख्या है जो येसु के रूपान्तरण के साक्षी हैं और यही कल के अगुवे बनेंगे। ईसा का रूपान्तरण ताबोर पर्वत में हुआ जो कई अर्थों में महत्त्वपूर्ण है।
1. ईसा के लिए - उसे अपने लिए निर्णय लेना है। उसने यह निर्णय लिया था येरुसालेम जाने के लिए जहाँ वे क्रूस या दु: ख को स्वीकार करते हैं। इस निर्णय की स्वीकृति उसे ताबोर पर्वत में मिलती है।
2. मूसा और एलियस से मुलाकात- अब मूसा सर्वोच्च नियम देने वाला इस्राएली था। दूसरी तरफ एलियस पहला और सबसे महान नबी था, जिन्होंने ईश्वर के संदेश को लोगों के पास लेकर आये। ईसा से इनकी मुलाकात ने यही कहा "आगे बढ़ो"।
3. ईश्वर ने ईसा से कहा- ईसा कभी भी अपनी इच्छानुसार निर्णय नहीं लेते हैं इसलिए वे कहते हैं मैं आपकी इच्छा पूरी करूँगा। ईश्वर के सामने अपनी पूरी योजना और इच्छा प्रकट करते हैं, ईश्वर कहते है - "यह मेरा प्रिय पुत्र है इसकी सुनो"।
4. शिष्यों के लिए शिष्य ईसा के कथन से बिल्कुल हताश और निराश हो चुके थे कि वे मरने के लिए येरुसालेम जा रहे हैं। उस मसीहा के प्रति उनकी नकारात्मक सोच थी मगर इस घटना के द्वारा उन्होंने ख्रीस्त की महिमा देखी। समय बीतता गया। घटनाएँ घटती चली गईं। परदे से परदा उनके मन रूपी पटल से हटता गया, साफ होता गया। अब वे अधिक गहराई से येसु को समझने लगे।

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