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क्या मैं अपने भाई का रखवाला हूँ?
ईश्वर की महती कृपा का फल हमारे पुरखों को काइन और हाबिल के रूप में मिला जो कालांतर कृषक और चरवाहा बने। समय आने पर उन्होंने अपनी फसल का प्रथम उपज और अपने झुण्ड की उत्तम, मोटी भेड़ प्रभु को बलि चढ़ाई। ईश्वर को काइन का बलिदान ग्राह्य नहीं हुआ जबकि हाबिल की बलि से वे प्रसन्न हुए। इससे काइन को बहुत धक्का लगा और उसने अपने भाई को हमेशा- हमेशा के लिए अपने रास्ते से हटाना चाहा। ईश्वर हर एक जन की खोज- खबर लेता है। जब काइन से पूछा गया कि उसका सहोदर भाई कहाँ है? उसने टेढा जवाब दिया। आज भी हमारे जीवन में गलत काम होते हैं तो हम छिपाते हैं, स्वीकार नहीं करते हैं। ईश्वर हमसे सीधे प्रश्न पूछते हैं। हम छिप नहीं सकते हैं कि हम टाल- मटोल से बच जाएँगे। प्रभु हमारे अंतरतम को छूना चाहते हैं। क्या मैं पिता ईश्वर और अपने पड़ासियों के प्रति खुला हूँ? अगर नहीं तो पिता के द्वारा हम काइन की भाँति शापित होंगे। समय रहते ही हम इस बात पर गहरा मनन - चिंतन करें।
दूसरे पाठ में येस फरीसियों को कोई चिह्न नहीं दे पाते हैं क्योंकि उन्होंने अपना हृदय, सोच, बात, काम हर क्षेत्र से अपना हृदय रूपी द्वार बंद कर दिया है। मैं भी तो कहीं फरीसियों के समान नहीं बन गया हूँ? हम अपने को जाँचें और दिल रूपी दरवाजे को ईश्वर के लिए हमेशा खुला रखें। प्रभु दरवाजे पर खड़े होकर खटखटाते हुए कहते हैं यदि कोई मेरी आवाज सुनकर दरवाजा खोलेगा तो मैं उसके यहाँ आऊँगा और उसके साथ भोजन करूँगा।
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