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कुष्ठ रोग साध्य है।
कई साल पूर्व मुझे धनबाद के गोविन्दपुर कुष्ठ रोग अस्पताल जाने का मौका मिला। मुख्य द्वार के सामने बड़े - बड़े, सुन्दर अक्षरों में लिखा था, "कुष्ठ रोग साध्य है।" अपने मित्रों के साथ अस्पताल में कार्य करने और कुष्ठ रोग से ग्रसित लोगों के जीवन को बहुत करीब से देखा। दो सप्ताह के पश्चात् और दो सप्ताह के लिए कुष्ठ रोगियों के लिए बने कॉलोनियों में चले गए। वे कॉलोनियाँ उन लोगों के लिए बने हैं जिन्हें उस रोग से ठीक होने के बावजूद वहाँ रहना पड़ता है। परिवार के सदस्य अब भी उन्हें स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। मेरे मन में सवाल था आखिर कब तक ऐसा चलता रहेगा। आज मनुष्य चाँद तक पहुँचने और रहने की सोच रहा है लेकिन हमारे परिवारों के सदस्यों के प्रति हमारी सोच में तनिक भी परिवर्तन नहीं आया है। कितनी अफसोस की बात है। कुछ दिनों पहले एक लड़के ने टी शर्ट पहना था जिसमें लिखा था। "हम सुधरेंगे नहीं।" हम कब तक मानवता के मूल्य से अनभिज्ञ रहेंगे?
नए व्यवस्थान में रोग से बढ़कर कोई भी घातक बीमारी नहीं थी। इस रोग से ग्रसित लोगों का जीवन बिलकुल दयनीय था, दु: ख और पीड़ा, शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक प्रताड़ना। शारीरिक पीड़ा को हम सह लेते हैं लेकिन मानसिक पीड़ा असहनीय हो जाती है जब अपने कहलाने वाले ही पराए हो जाते हैं।
सुसमाचार पाठ में ईसा की जो तस्वीर उभर कर आती है वह हमारे लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।
1. ईसा ने उस व्यक्ति को दूर नहीं भगाया जिसने नियम का उल्लंघन किया था, क्योंकि उसे लोगों के सम्पर्क में आना बिलकुल मना था। कहने की अनुमति नहीं थी। लेकिन ईसा ने दया और करुणा भाव से उस व्यक्ति की आवश्यकता को पहचाना।
2. ईसा ने अपना हाथ बढ़ाया और उसका स्पर्श किया जो अशुद्ध था। ईसा की दृष्टि में वह अशुद्ध नहीं था। वह एक मनुष्य था जिसकी घोर जरूरत थी।
3. चंगाई के बाद ईसा ने उसे रीति पूरी करने के लिए भेजा। उसने मानव के नियम का पालन अर्थात् धार्मिकता का पालन किया।
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