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कथनी और करनी
कथनी और करनी में फर्क होता है । कुछ लोग केवल कथनी के पक्षधर होते हैं तो कुछ करनी के। जो लोग केवल कथनी के पक्षधर होते हैं वे अधिकतर दिखावे की जिन्दगी जीते हैं और उन में किसी तरह की कोई वास्तविकता नहीं होती है। उनकी आध्यात्मिकता छिछली होती है। और जो लोग करनी के पक्षधर होते हैं वे हमेशा अपने कर्म पर विश्वास करते और कर्म के द्वारा ही अपनी अभिव्यक्ति देते हैं। उनकी आध्यात्मिकता गहरी होती है। आज के सुसमाचार पाठ में येसु उन जैसे लोगों को धिक्कारते हैं जो अधिकार या गद्दी या पदवी के दिखावे की जिन्दगी जीते हैं। येसु सेवा कराने नहीं बल्कि सेवा करने आये थे। उसने दूसरों की खातिर अपने को निछावर कर दिया। ताकि उसकी निर्धनता और समर्पण के द्वारा दूसरे सम्पन्न हो सकें और अनन्त जीवन प्राप्त कर सकें। येसु उन जैसे लोगों से दूर रहने के लिए कहते हैं जो दिखावे की जिन्दगी जीते हैं। येसु उनके जैसे नहीं बनने की सलाह भी देते हैं।
सोदोम और गोमोरा पाप और दुष्कर्म का पर्याय बन चुका था। नैतिकता मानो उनसे बहुत दूर जा चुकी थी। न तो वे ईश्वर से भय खाते थे और न ही किसी की बात सुनते थे। ईश्वर की आज्ञाओं का उल्लंघन करना, संहिता की अवहेलना करना और पापाचारपूर्ण जीवन जीना उनका दिनचर्या बन गया था। नबी इसायस सोदोम और गोमोराह के लोगों को चेतावनी देते हैं और कहते हैं कि तुम ईश्वर की वाणी पर ध्यान दो। अपने को धोकर शुद्ध कर लो और ईश्वर की नजरों से अपने दुष्कर्म को दूर रखो, बुराई करना छोड़ दो, भलाई करना सीखो, पददलितों की मदद करो, अनाथ और विधवाओं की रक्षा करो। नबी उनसे दिलासा देते हुए कहते हैं कि तुम ईश्वर के पास लौट कर आओ वह तुम्हारे पापों को धोकर हिम और ऊन की तरह उज्ज्वल और सफेद कर देंगे। नबी उन्हें धमकाते हुए भी कहते हैं कि यदि तुम ईश्वर की आज्ञाओं की उवहेलना करोगे और हठमर्धी बने रहोगे तो तुम तलवार के घाट उतार दिए जाओगे। यह सर्व विदित् है कि कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं होती। और अन्ततः सोदोम और गोमोराह को और उनके सब निवासियों को नष्ट कर दिया जाता है।
कहीं हमसे देर न हो जाए इसलिए समय रहते ही हमें पश्चात्ताप कर लेना चाहिए। प्रार्थना, परोपकार और दया के कामों के द्वारा हम अपने जीवन को ईश्वर की दिखाई राह पर लाने का प्रयास करें। इस पुण्य काम में ईश्वर हमारी मदद जरुर करेंगे।
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