ईश्वर का वचन और बीज।

"जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले"।
स्वर्गराज्य के विषय में प्रभु येसु का सर्वप्रथम दृष्टांत बीज का दृष्टांत है। इस दृष्टांत की व्याख्या स्वयं प्रभु येसु के द्वारा की गयी है। श्रोताओं के लिए यह दृष्टांत एक चेतावनी और प्रेरितों के लिए विवादास्पद वातावरण में एक आशा का चिन्ह था। बोने वाला ईश्वर है, कलीसिया है, माता- पिता एवं शिक्षकगण और बोया हुआ बीज उच्च फसल उत्पन्न करने वाला प्रभु का वचन है। हम में से प्रत्येक को यह सोचना है कि मैं व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से किस प्रकार के समूह में शामिल हूँ। हमारी जीवन यात्रा में हम तीनों क्षेत्रों का सामना करते हैं। हम चट्टानों में भटक जाते हैं, प्रलोभनों के काँटों रूपी चिंताओं के बोझ के नीचे हमारा दम घुटता है और उदार तथा भले हृदयरूपी फसलदार भूमि पर जाने वाले रास्ते में हमारा पाँव घसीटता है तो दूसरी ओर धन एवं क्षणभंगुर खुशी देने वाली चीज़ों पर भी मन भटकता है। हम ठोकर खाकर गिर जाते हैं फिर उठते हैं- क्योंकि प्रभु का वचन हममें तब जड़ जमायेगा जब हम दृढ़प्रतिज्ञ बने रहेंगे। प्रभु के वचन को सुनने की हमारी शक्ति कैसी है? वचन को समझने की या उसको अपने जीवन में लागू करने की हममें कितनी क्षमता है?

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