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आध्यात्मिक भोजन
सामान्यतः प्रत्येक मनुष्य को भूख और प्यास लगती है। अपनी जरूरत और सुविधा के अनुसार उन्हें भोजन करना पड़ता है। किन्तु येसु पिता के काम में इतना व्यस्त थे कि उन्हें और किसी बात की फुर्सत या चिन्ता नहीं होती थी। इसका तात्पर्य यह है कि उन्होंने अपने जीवन को पूर्णरूपेण पिता ईश्वर को समर्पित कर दिया था। "सबसे पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहें और ये सब चीजें यों ही मिल जायेंगी"।
आज येसु हमें 'आध्यात्मिक भोजन के बारे में इच्छा जाहिर करने के लिए स्वागत् कर रहे हैं । क्योंकि यही भोजन सांसारिक भोजन से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है एवं इससे जीवन प्राप्त होगा। अत: आध्यात्मिक भोजन के सिवाय किसी और भोजन की चिन्ता न करें, या ईश्वर की इच्छा को पूर्ण करें और किसी बात की चिन्ता न करें। क्योंकि बाईबल हमें बताता है "आकाश के पक्षियों को देखो। वे न तो बोते हैं, न लुनते हैं और न ही बखारों में जमा करते हैं। फिर भी तुम्हारा स्वर्गिक पिता उन्हें खिलाता है" (मत्ती 6 :26 )। अत : किसी भी बात की परवाह किये बिना हम सिर्फ और सिर्फ ईश्वर के राज्य की खोज में निरन्तर लगे रहें, तथा लोगों के मन में ईश्वरीय राज्य के सुसमाचार को बोते रहें।
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